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मू० पु० वि० प्रश्नोतर
वर्ष में गंगा, सिंधु और वैताड़ पर्वत के सिवाय, शत्रुञ्जय आदि सब पदार्थों का नष्ट होना लिखा है ?
उ-जम्बूद्वीप पन्नति सूत्र में भरत चक्रवर्ती छः खण्ड साधने को जाते हैं तब ऋषभकूट पर पहिले के चक्रवर्ती का नाम देख, क्रोध के साथ उस नाम को नेस्तनाबूद कर देते हैं
और अपना नाम लिखते हैं। अब बतलाइये भरत चक्रवर्ती के पूर्व अठोरा कोड़ाकोड़ सागरोपम में चक्रवर्ती हुए, उन्होंने ऋषभकूट पर अपना नाम लिखा था, इससे यह सिद्ध हुआ कि ऋषभकूट शाश्वत है, पर सूत्रों में इसका नाम शाश्वत रहना नहीं बतलाया है, यह मौख्य और गौणता सूत्रों की शैली है इसी तरह शत्रुञ्जय को भी समझ लीजिये।
प्र.-भगवती सूत्र में कृत्रिम पदार्थ की स्थिति संख्यात कोल की लिखी है, तो अष्टापद पर भरत के बनाये मन्दिरों की यात्रा गौतम स्वामी ने कैसे की ? क्योंकि भरत और गौतम के बीच तो असंख्य काल का अन्तर है। . उ०--जम्बूद्वीप पन्नति सूत्र में छः आरों का वर्णन है, पहिले पारा के वर्णन में बावड़िये बतलाई हैं । पहिले पारा के पूर्व, नौ कोडाकोड़ सागरोपम तो युगलिया रहे, उन्होंने तो वे बावड़ियें बनाई नहीं और उन बावड़ियों को शाश्वती सूत्रों में भी कहीं नहीं तो फिर वे बावड़िये असंख्य काल कैसे रहीं। यदि यह कहा जाय कि देवताओं की सहायता से असंख्य काल रह सकती हैं तो अष्टापद के मन्दिर भी देवताओं की सहायता से असंख्य वर्ष रह गए हों तो क्या आश्चर्य है ?
प्र०-यदि जैन-मूर्ति नहीं मानने वालों का मत भूठा है तो
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