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मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर
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की आशाता है । आप भी भैरू की स्थापना को पीठ देकर नहीं बैठते हो कारण उसमें भैरूं की शातना समझते हो ।
प्र०
-भगवान ने तो दान, शील, तप, एवं भाव, यह चार प्रकार का धर्म बतलाया है। मूर्तिपूजा में कौनसा धर्म है ?
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उ०- मूर्तिपूजा में पूर्वोक्त चारों प्रकार का धर्म है जैसे(१) पूजा में अक्षतादि द्रव्य अर्पण किये जाते हैं यह शुभक्षेत्र में दान हुआ ।
( २ ) पूजा के समय, इन्द्रियों का दमन, विषय विकार की शान्ति, यह शीलधर्म हुआ ।
( ३ ) पूजा में नवकारसी पौरुसी के प्रत्याख्यान यह धर्म हुआ ।
( ४ ) पूजा में वीतराग देव की भावना गुणस्मरण यह भाव धर्म । एवं पूजा में चारों प्रकार का धर्म होता है । में तो हम धमाधम देखते हैं ?
प्र० पूजा
ज्ञान है ? दया
उ०- कोई अज्ञानी सामायिक करके या दया पाल के धमाधम करता हो तो क्या सामायिक व दया दोषित और त्यागने योग्य है या धमाधम करने वाले का पालने में एकाध व्यक्ति को धमाधम करता देख यह शुद्ध भावों से दया पालने वालों को ही दोषित ठहराना क्या श्रन्धवाद नहीं है ? इसी प्रकार यदि किसी स्थान या किसी व्यक्ति का धामधूम करना देख विद्वान पूजाको बुरा नहीं समझता है । आप लोगोंने अभी पूजा के रहस्यको नहीं समझा है तब आपको मालूम ही क्या कि कैसे और किसकी पूजा होती है।
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