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मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर
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की वाणी समझ उनसे ज्ञान प्राप्त कर. आत्मकल्याण चाहते हो और न वाणी की वन्दन पूजन करने से इन्कार करते हो, इस्रोसे तो आपकी ऐसी बुद्धि होती है। श्री भगवती सूत्र के आदि में गणधर देवों ने " णमो बभीए विीए" कहकर स्थापना सूत्र ( ज्ञान ) को नमस्कार किया है। मूर्त्ति अरिहन्तों का स्थापना निक्षेप है और सूत्र अरिहन्तों को वाणी की स्थापना है, एवं ये दोनों वन्दनीक तथा पूजनीक हैं ।
प्र० - महावीर तो एक ही तीर्थकर हुए हैं पर आपने ( मूर्तिपूजकों ने ) तो ग्राम ग्राम में मूर्त्तिएँ स्थापन कर अनेक महावीर कर दिये हैं ।
उ० -यह अनभिज्ञता का सवाल है कि महावीर एक ही हुए परन्तु भूतकाल में महावीर नाम के अनन्त तीर्थंकर हो गये हैं। इसलिये उनकी जितनी मूर्तिऐं स्थापित हो उतनी ही थोड़ी हैं । यदि आपकी मान्यता यही है कि महावीर एक हुए हैं तो आपने अपने पन्ने पन्ने पर महावीर की स्थापना कर उन्हें शिर पर क्यों लाद रक्खा है ? मन्दिरों में मूर्ति महावीर का स्थापना निक्षेप है और आपके पन्नों पर जो “महावीर” ये अक्षर लिखे हुए हैं वह भी महावीर का स्थापना निक्षेप है । इसमें कोई अन्तर नहीं है । तब स्वयं तो ( अक्षर ) मूर्ति को मानना और दूसरों की निन्दा करना यह कहाँ का न्याय है ।
प्र०—कोई तीर्थकर किसी तीर्थंकर से नहीं मिलता है पर आपने तो एक ही मन्दिर में चौबीसों तीर्थंकरों को एकत्र बैठा दिया ।
उ०- हमारा मन्दिर तो बहुत लम्बा चौड़ा है उस में तो
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