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मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर
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हमारे पूज्यजी दग्ध हुए ? श्रादि । यदि हाँ तो बस ये भी मूर्ति पूजक हैं यह सिद्ध हो गया, क्योंकि अन्यथा पूज्यजी के शरीर से जीवात्मा के विदा लेने के बाद तो वह शरीर एक प्रकार की नर श्राकृति वाली मिट्टीही शेष रही और बाद उस मिट्टी केपुतले कोसोने-चाँदी के पुष्पों से सत्कारकरना यह स्थापना और द्रव्य निक्षेप की पूजा नहीं तो और क्या है ? जरा नेत्रों को मूंद सच्चे दिल से हृदय में विचारिये कि हम लोग फिर अपनेमान्य प्रभुकी मूर्ति के बारे में इस रीति से भिन्न और किस अनोखी रीति सेपूजा करते हैं ?
प्र०- खैर ! यह तो जो कुछ है सो सुन लिया, पर अब आप यह बतावे कि संसार में आम तौर से प्रत्यक्ष मूर्ति पूजने वालों की संख्या कितनी है ? .. उ०-यों तो मनुष्य और देवता सब के सब मूर्ति पूजक ही हैं परन्तु हां जो नरक के जोव और विकल मनुष्य हैं वे मूर्ति का स्पर्श नहीं करते हैं, इनके अलावा क्या आर्य, और क्या अनार्य सब मूर्तिपूजक हैं तथापि स्पष्ट ज्ञान के लिए देखिये:
बौद्धमत के ... ५८००००००० रोमन कैथोलिक ३९००००००० हिन्दु ... ... २७००००००० जैन ... ... ...१०००००० श्रीकादिको गिना जाय तो कुल १४०६९००००० हैं। .
इनके सिवाय भी मुँह से मूर्तिपूजा नहीं माननेवाले किन्तु हृदय से माननेवालों की संख्या अलग है । कारण देहधारी जीव का हृदय सदा से मूर्तिपूजक रहा है अतः वह येन केन प्रकारेण मूर्ति माने बिना नहीं रह सकता।
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