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मू० पू० वि० प्रश्नोत्तर ___ उ०-मैं मूर्ति द्वारा शुद्ध, सनातन, सर्वज्ञ, ईश्वर, परमात्मा तीर्थङ्करों की पूजा करता हूँ। मूर्ति तो मात्र निमित्त कारण है। जैसे वीतरागको वाणीको पूजा के लिए सूत्रोंके पन्ने हैं वैसे ही सर्वज्ञ तीर्थंकरों को खुदकी पूजाके लिए मर्ति है जरा नीचे की बातों को ध्यान लगा कर सुनो।
मूर्ति के निमित्त कारण से । सूत्रों के निमित्त कारण से ___ तीर्थंकरों की पूजा | तीर्थंकरों की वाणी की पूजा
मूर्ति के दर्शन मात्र से । सूत्रों को देखते व पठन मेरे हृदय में तीर्थंकरों के प्रति | पाठन करते ही हमारे हृदय में पूज्यभाव पैदा होता है और | तीर्थंकरों की वाणी के प्रति हम लोग यह कहते हैं कि:- पूज्य भाव पैदा होता है और
हमारे मुँह से सहसा यह
निकल जाता है कि:अपार संसार स मुद्दपारं। जिण वयणे अणुरत्ता, पता शिवं दितु सुइक्क सारं । जिण वयण जे करति भावात्र सव्वे जिणंदा सुरविंद वंदा।| अमला असंकलिहा. कल्लाण कल्लीण बिसाल कंदा।। तेहुंति परत संसारे ॥ 'कल्याण कंद स्तुतिः
'उतरा० अ० ३३ ॥ मूर्तियों को मैं तीर्थङ्कर कहता हूँ | सूत्रों कोहम जिनवाणी कहते हैं। जिन तीर्थङ्करों की मूर्तिएं हैं उन्हें | सूत्रों को भी तीर्थंकरों की मैं उसी नाम से पुकारता वाणी कहते हैं और उन्हें उन्हीं
के नामसे यों कहतेहैं जैसे:
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