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श्रीरत्नप्रभाकर ज्ञान पुष्पमाला पु० नं० १६५
मूर्तिपूजा विषयक प्रश्नोत्तर।
[वर्षाकी मौसम थी, आकाश चारोंओर काले मेघोंसे अच्छादित था। बिजली की म्लान चमक रह २ कर दुनियाँ के भाग्य पर मन्द मुस्कान कर रही थी तो मेघों की भयङ्कर गर्जना ब्रह्माण्ड को ही फोड़ डालने का मानों मिथ्या प्रयास कर रही थी। बीच २ में रिमझिम २ बूंदों का बरसना बड़ा भला जान पड़ता था। प्रफुल्लित वनराजि और हरे-भरे खेत अपनी स्वाभाविक सुन्दरता से सहसा मन को मोह लेते थे। बाग-बगीचों में फूलों की सुगंधि भौरों को मस्त बना रही थी। पक्षियों का कोमल कलरव कानों को बड़ा मीठा लगता था । गोपाल और किसान लोग वर्षा की खुशी में मस्त हो मीठी २ रागें आलाप रहे थे । व्यापारियों की थकावट नगर बाहिर की बगीचियों की शिलाओं के रगड़ों से दूर भाग रही थी । धूरिये बोहरे, किसानों के खेतों से फूक, फली, काकड़ी, तरबूज आदि की गांठे कंधों पर लादे आ रहे थे । नगर के बाहिर चारों ओर कुँए और तालाब जल से उमड़ पड़े थे। साधुओं के उपाश्रयों में लम्बी २ ललकारों से व्याख्यान हो रहे थे। मन्दिरों में स्नात्रमहोत्सवों और प्रभुपूजा की सूचना पेटीतबले दे रहे थे। मालरों के झंकार और घंटाओं के गुजार से नगर का पाप पलायन कर रहा था। दानियों को दान कीर्ति
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