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________________ प्रकरण पांचवाँ १७४ out of Egypt even to this day but have walked in tent and in a tabeunacle. ____Old I. II Samuel. Chap VII/6. ___“जा और मेरे सेवक दाऊद को यह कह कि परमेश्वर यह कहता है कि क्या तूं मेरे रहने को एक घर बन्धायेगा।" ____ इजिप्त से जब मैंने इजरायल के वंशजों को छुडवाये तब से श्राज की घढ़ी तक मैं तम्बू और डेरों में फिरा करता हूँ। ईश्वर के इस हुकम की तामील दाऊद ने कर ईश्वर के लिये एक आलीशान मकान (मन्दिर ) बनवा के वहां वह ईश्वर की आकृति की भक्ति पूर्वक उपासना करने में तत्पर हुआ । क्या यह मूर्ति जा से भिन्न रीति है ? ४-मूर्ति पूजा नहीं मानने वालों में चौथा नम्बर पारसियों का आता है । इनकी संख्या करीब १ लाख है पर मूर्तिपूजा से वे भी वंचित नहीं रहे हैं। वे लोग अग्नि को देवता के रूप में मानते हैं और उनका बड़ा ही आदर सत्कार करते हैं। क्या यह मूर्ति पूजा नहीं है ? इतना ही क्यों पारसी लोग अपने पैगम्बर जरथोत्र का सुन्दर फोटो भी रखते हैं क्या सभ्य समाज इसे मूर्ति पूजा न कह कर मूर्ति-खण्डन कहेगा ? आगे चल कर देखें तो पारसियों के सूर्यदेव को भी उपासना है । ५-मत्ति विरोधकों में पाँचवाँ नंबर स्थानकमार्गी भाइयों का श्राता है । ये लोग मुँह से कहते हैं कि हम मत्रीि को नहीं मानते हैं परन्तु आभ्यन्तर रूप में अपने पज्य पुरुषों की मत्तिएँ, पादुकाएँ, उनके चित्र, समाधि और फोटो खिंचवा कर उनकी पूज्यभाव से पूजा करते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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