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________________ १६९ अंग्रेजों में मूर्तिपूजा - देखिये-प्रोटेस्टेण्ट ईसाई कितना हो मति विरोधी क्यों न हो पर ईसामसीह के चित्र और क्रॉस का तो अपमान वह किसी प्रकार से सहन नहीं कर सकता । कारण वह मुंह से भले ही कहदे कि मैं मूर्ति पूजा नहीं मानता हूँ पर उसका हृदय इसकी साक्षी नहीं देगा वह तो अपने परोपकारी इष्ट देव की ओर तत्क्षण झुकेगा ही । सदा से मूर्ति की मान्यता रखने वाला निर्मल मनुष्य हृदय अपने मान्य महा पुरुष का अपमान कभी नहीं सह सकता। इतना हो क्यों पर जब वह कहीं ईसा का चित्र भी देख लेता है तो तत्काल टोप उतार उसका सम्मान अवश्य करता है । क्या यह मर्ति पूजा से कोई भिन्न रीति है। इससे आगे चलिये एक चार आना में कपड़ा खरीदिये उस पर यूनियन जैक ( अंग्रेजी झण्डा ) का निशान बना दीजिये और उसे अब पैरों तले कुचलिए क्या कोई ईसाई ऐसा करने देगा नहीं, वह उसकी रक्षार्थ अपने श्रापकी बाजी लगा देगा पर अपने राष्ट्रीय चिन्ह देश के निशान, उस अमर मूर्ति का अपमान नहीं होने देगा तो बस, इसी का नाम तो मूर्तिपूजा है। .. जिस ईसामसीह ने मूर्ति पूजा का विरोध किया था आज उसी के शिष्यों में से सोक्रेटिस (शुकरत्न) ने अनेकों प्रमाणों द्वारा मूर्ति पूजा को ठोक सिद्ध किया है और अनेकों अंग्रेज आज गिरजाघरों, चित्रों और अखबारों में जहाँ देखो वहीं पर मूर्ति से ही काम ले रहे हैं। यही नहीं किन्तु सारे संसार को यह प्रेरणा कर रहे हैं कि प्रभु ईसा की शरण आयो। क्या ऐसी दशा में कोई यह प्रमाणित कर सकता है कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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