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________________ १६७ मुस्लिम धर्म में मूर्तिपूजा मुँह करके नमाज पढ़ते हैं । उस मदिर को मसजिदअलहगम के नाम से पुकारते हैं। यहाँ एक पत्थर का बना हुआ चौरस मकान है और वह काला पत्थर इसी मकान में स्थापित है जिसका कि यात्री मुसलमान लोग चुम्बन करते हैं । इस काबा (किबला) को मान देने का कुरान में भी बहुत जगह लिखा हुआ है। यदि हम पं० दरबारीलालजी के शब्दों में कहें तो स्पष्ट हो जायगा कि मुसलमान लोग भी मूर्ति पूजक ही हैं जैसा कि आपने लिखा है___"हाँ, यह बात कहने में मुझे कोई संकोच नहीं कि एकाध अपवाद को छाड़ कर सभी मनुष्य मूर्ति पूजक हैं। बल्कि ति पूजा के विरोधो मूर्ति के द्वारा पूजा करने वाले ही नहीं होते किन्तु मूर्ति पूजक भी होते हैं। एक मुसलमान मसजिद में मूर्ति रखना पसन्द नहीं करता किन्तु इसका मतलब यह नहीं कि वह मूर्ति पूजक नहीं है, उसकी मूर्ति पूजकता बजाय घटने के कुछ बढ़तो ही गई है। अब उसने छोटी सी मूर्ति के बदले समूची मसजिद को ही मूर्ति माननी है । मसजिद की एक एक ईट को वह मूर्ति के हाथ पैर की तरह सन्मान की चीज समझता है । वह यह भूल जाता है कि मसजिद की ईटों और साधारण मकान को ईटों में कोई फरक नहीं है । साधारण मकान में भी उतना ही खुदा है जितना कि मसजिद में । परन्तु एक बुतपरस्त जिस प्रकार मूर्ति की पवित्रता में विश्वास रखता है और उसकी ओट में अहंकार की पूजा करने के लिए प्राण लेने और देने को तैयार होजाता है, इसी प्रकार बुतपरस्त को घृणा की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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