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इस अन्य के लिखने में निमित्त कारण कौन है ? मैं स्थानकवासी समुदाय से मूर्तिपूजक समाजमें आया उस समय कई प्रकार के लेखों और पुस्तकों द्वारा मेरे पर आक्रमण कर स्थानकवासी भाइयों ने मुझे एक प्रकार का बल प्रदान किया और बराबर १२ वर्ष, मैं उन आक्षेपों का मुंहतोड़ उत्तर देता होरहा परन्तु बाद करीबन ७-८ वर्षों से मैंने इस विषय को छोड़ दिया और अपना समय तात्विक एवं इतिहास ग्रंथ लिखने में विवाया, पर इसीसे हमारे स्थानकवासी भाइयों को सन्तोष नहीं हुआ शायद् उन्होंने मुझे अपने लेखों के उत्तर के लिये कमजोर समझा होगा। इसी कारण पूज्य श्री जवाहरीलालजीमहाराज ने अपनी सचित्र पुस्तकों में आचार्य केशीश्रमण के, प्र०व० श्री चोथमलजी ने भगवान महावीर के और शंकरमुनिजी ने आदि तीर्थंकर ऋषभदेव के मुंहपर डोरावोलो मुंहपती बंधवाने के चित्र छपवाये तथा स्वामि सन्तबालजी व मणिलालजी ने अपनी पुस्तकों में लौकाशाह को क्रान्तिकार लिख तीर्थङ्करों की तथा पूर्वाचार्यों की निंदा को किसी ने "क्या मूर्तिपूजा शास्त्रोयुक्त हैं" इत्यादि पुस्तकें छपवा कर मेरी आत्मा में इस विषय पर लिखने की मानो प्रेरणा ही की हो और उस प्रेरणा से प्रेरित हो इस कार्य के लिये मैंने चार मास जितना समय इन सज्जनों की सेवा के लिये निकाला कर यह दोनों पुस्तक तैयार की है अतएव इन पुस्तकों को पद कर सत्य प्रहन करेगा तो मैं मेरा समय शक्ति का व्यय को सार्थक सममूंगा।
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