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________________ १४५ मथुरा कलां में जैनमूत्तिएँ वसुदेव शरण अग्रवाल एम० ए० एल० एल० बी० मथुरा लिखते हैं कि:____ "मथुरा कलां में जैन मूर्तियों की संख्या बौद्धमूर्तियों के समान ही समझी जानी चाहिए ! मथुरा की जैन कला महत्त्व में भी हिन्दू या बौद्धकला से कम नहीं है । नागावृत जैन तीथङ्करों की कई एक बहुत ही श्रेष्ठ और संजीव मूर्तिएँ मथुरा के संग्रहालय में हैं। जैनकला में सर्व तो भद्र-प्रतिमाएँ बहुत मिलती हैं, जिनमें एक ही पत्थर में चारों दिशाओं की ओर मुँह किए चार तीर्थङ्कर बने रहते हैं। इनमें एक तीर्थङ्कर सदा ही नाग के छत्र वाला पाया जाता है जिसे हम सुपार्श्वनाथ या पार्श्वनाथ मान सकते हैं।" नागरी प्रचारिणी पत्रिका भाग १३-अंक १ । जैनियों की मूर्ति स्तूपादि प्राचीन पदार्थ अभी तक तो मेरे खयाल से भूगर्भ में अधिक गुप्त हैं, क्योंकि आज तक जो कुछ उपलब्ध हुए हैं वे तो अन्यान्य धर्मावलंबी पुरातत्त्वज्ञों की ही शोध-खोज के परिणाम हैं न कि खास जैनियों के क्योंकि जैनियोंकी तरफ से तो इस ओर प्रयास होना दर किनारे रहा इस महत्त्वपूर्ण कार्य का श्रीगणेश भी नहीं हुआ है । इस विषय में सर विन्सेन्ट स्मिथ साहेब का मत है कि: "I feel certain that the remains at Kaushambi in the Allahabad district will prove to be Jain for the most part and not Buddhist aš Canningham supposed. The village undoubtedly represents the Kaushambi of the Jains and (१०)-३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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