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________________ प्रकरण पांचवाँ १४० स्टेशन से थोड़ी दूरी पर ढ़ाका प्राम में प्राचीन जैन मूर्तिएँ मिली हैं वे भी ईस्वी सन् के पूर्व कई शताब्दियों की हैं। (१७) पुरातत्त्वज्ञ श्रीमान् हीरानन्द शास्त्री ने एक विस्तृत लेख सरस्वती मासिक पत्र वर्ष १५ अंक २ में प्रकाशित करवाया है जिसमें आप लिखते हैं कि मथुरा से १४ मील के फासिले पर परखम नामक ग्राम में एक प्रतिमा मिली है, जिस पर ब्राह्मीलिपि में एक लेख है, उसको पढ़ने से पाया जाता है कि यह मूर्ति ईस्वी सन् के पूर्व२५० वर्षों की है । इसी प्रकार जैनधर्माविलंबिय के एक स्तूप का भी पता मिला है जो कि पिप्रावह के स्तूप से कम पुराना प्रतीत नहीं होता है । यह स्तूप गौतमबुद्ध के निर्वाण के बाद थोड़े ही समय में बना है, अर्थात् ईस्वी सन् के पूर्व ४५० वर्षों में यह बना था। (१८) जैसे पूर्व और उत्तर भारतमें जैनों के प्राचीन स्मारक 'चिन्ह मिलते हैं वैसे ही दक्षिण भारत और महाराष्ट्र प्रान्त में भी जैनों के स्तूप, मूर्तिएँ और गुफाएँ कोई कम नहीं मिलती हैं। और उन प्राप्त स्मारकों का समय भी मौर्य चन्द्रगुप्त व उनसे भी पूर्व का है देखो "प्राचीन स्मारक नामक पुस्तक ।" (१६) भारतवर्ष का प्राचीन इतिहास पृष्ठ १६ में श्रीमान् त्रिभुवनदास लेहरचन्द ने लिखाहै है कि अंग्रेजों द्वारा खुदाई का काम करते वक्त एक महावीर की प्राचीन मूर्ति उपलब्ध हुई है और उसका चित्र देकर यह बतलाया है कि यह मूर्ति खारवेल के पूर्व अर्थात वि० सं० के पूर्व तीसरी शताब्दी की है इससे निःशंक है कि यह मूर्ति प्रायः २२०० वर्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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