SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 222
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकरण चाँ १२६ वाला सप्तति" नामक पागम को भी पुनः लिखाया था। इससे यह भी मालूम होता है कि केवल देवर्द्धिगणी क्षमाश्रमण के समय से ही आगम लिखने शुरु हुए हों सो नहीं किन्तु इनसे पहिले भी आवश्यकता पड़ने पर आगम लिपि बद्ध होते थे। महाराजा खारबेल के बाद श्राचार्य विमलसूरि कृत "पउमचरिय" नामक प्रन्थ को भी वि. सं. ६० में लिखे जाने का पता मिलता है। खारवेल के इस शिलालेख की १२ वीं पंक्ति में एक जैनमूर्ति का भी उल्लेख है जिसे हम प्रसङ्गोपात यहाँ उद्धत करते हैं:___..."मगधानां च विपुलं भयं जनेतो हथी सुगंगीय [-] पाययति [0] मागधं च राजानां वहसतिमित पादेवंदापयति [1] नंदराज नीतं च कालिंगजिनं संनिवेसं...... गह-रतनान पडिहारेहि अंग मागध वसुं च नेयाति [1] — हाथी गुफा शिलालेख पंक्ति १२ वीं इस शिलालेख से एक निर्णय स्वतः हो जाता है कि नंदवंशी राजा भी जैन धर्मोपासक थे क्योंकि जभी तो वे कलिंग पर आक्रमण करने के समय करिङ्गजिन (भगवान् ऋषभदेव की मूर्ति ) ले गये, और अपने वहाँ मन्दिर बनवाकर उनकी स्थापना कर सेवा पूजा करने लगे, बाद तोसरी पुश्त जब महाराजा खारवेल ने मगध पर चढ़ाई की तो वहां के राजा पुष्पमित्र को हरा कर सादि के साथ उसी मूर्ति को वापिस लाकर प्राचार्य सुहम्थी सरि द्वारा पूर्व मन्दिर में ही प्रतिष्ठा करवा कर सेवा पूजा करने लगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy