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________________ ( १५ ) को ध्यान में रखते हुए महापुरुषों द्वारा प्रचालित जैनधर्म के प्रचार कार्य को अक्षुण्ण रक्खा और उनके बाद में भी बराबर २००० वर्ष तक आपके शिष्य संप्रदायान्तर्गत इतर जैनाचार्यों ने आपकी स्थापित शुद्धि-मिशन द्वारा लाखों करोड़ों अजैनों को जैन बना अपने शासन को उन्नत बनाया, पर यह सब आपश्री के ही प्रथम पुरुषार्थ का सुन्दर फल था, अतएव जैन समाज एवं विशेषतः श्रोसवाल जाति आज भी आपके उपकार रूप ऋण से नत मस्तक है। ___ जैन समाज और खास कर ओसवाल समाज का यह सर्व प्रथम कर्तव्य है कि वे प्रतिवर्ष माघ शुक्ल पूर्णिमा के दिन विराट् सभा कर आचार्यरत्नप्रभसूरि की पवित्र जोवन-गाथा को प्रत्येक व्यक्ति के कर्णकुहरों एवं मन-मन्दिरों में भरदें जिससे कि वे अपने आपको आचार्य श्री के प्रबल ऋण भार से कुछ मुक्त कर सकें। अब यदि आप अपनी कृतघ्नता एवं प्रमादावस्था के कारण आचार्यश्री के जीवन से आज तक अज्ञात हैं तो लीजिये: "प्राचार्य रत्नप्रभसूरि का जयन्ति-महोत्सव" नाम की पुस्तक, तथा जिस समय श्राचार्य देव ने उपकेशपुर के राजा प्रजा को उपदेश दे जैन धर्म में दीक्षित किया था उस समय के दृश्य का एक प्रभावोत्पादक १६=१२ इंच का बड़ा साइज वाला तिरङ्गा चित्र, । इन दोनों अलभ्य पदार्थों को श्राप अपने पास मँगवा कर मन के मधुर मनोरयों को आज ही सफल बना अपने को कृत-कृत्य करें। सुशेषु किमधिकम आचार्य चरणाऽब्जानां चन्चरीकः ज्ञानसुन्दर Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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