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प्रकरण चतुर्थ का अर्थ घरदेव की पजा की लिखा है तो उन श्रावकों ने जिन प्रतिमा नहीं पर किसी कुलदेवी की पूजा की होगी ? इसका उत्तर खास शास्त्रकार इस प्रकार देते हैं कि:
"असहेज्ज देवासुर नाग सुवरण इत्यादि" लौंका० वि० सं० शो० टब्वा स्था० साधु अमोल हि० अनु० ___ आपत काले पण किण ही आपत्ती काल में देवासुर देवता ने समरे नहीं आपणा किया नाग सुवर्ण यक्ष किन्नर किंपुरुष कर्म आपणे भोगविये एहवी , गुरूढ गन्धर्व महिरागादि की मनोवृत्ति छ
सहायता नहीं लेने वाले थेश्री भगवती सूत्र पृष्ट १८३
श्री भगवती सूत्र पृष्ट ३३७ - लौकागच्छीय और स्थानकवासियों की सामान मान्यता है कि तुंगिया नगरी के श्रावक अपने धर्म में इतने दृढ श्रद्धा वाले थे कि किसी आपत्ती काल में भी किसी देव दानव का स्मरण न करे अर्थात् सहायता नहीं इच्छे इस हालत में यह कहना कहाँ तक ठीक हे कि बिना किसी आफत और अपने पूज्याचार्यदेव के वन्दन समय तुंगिया नगरी के श्रावकों ने कुलदेवी की पूजा की अर्थात् यह कहना सरासर अन्याय एवं असंगत है। दूसरा जैन श्रावकों के गृह में पहिले कुल देवियां भी नहीं थी। कुल देवियों का मानना तो आचार्य रत्नप्रभसूरि कि जिन्होंने उपदेश द्वारा अनेक राजपूतों को प्रतिबोध कर जैनी बनाये बाद वह शेष रहे मांसाहारी क्षत्रियों के साथ मिल पुनः मांस भक्षी देवि देवताओं के बली पूजादि न करने लग जाय । इस लिये समकितधारी देवी उन जैन क्षत्रियों के कुलदेवी स्थापन करवा दी थी।
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