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प्रकरण चतुर्थ
(१) अरिहन्त (२) अरिहंत के चैत्य (३) अनगार
अरिहंत पद ( इसका अर्थ हो नहीं हुआ है ) साधुपद अब रहा दूसरा “अरिहंत के चैत्य का शरणा" इसको आप जैनों की मान्यतानुमार कहो तो छदमस्थअरिहंत अरिहंत पद में हैं क्योंकि अरिहंत जन्मते हैं उस समय इन्द्र नमोत्थुणं के पाठ से. नमस्कार करते हैं और श्री स्थानायांग सूत्र स्थान तीसरा पृष्ट २६० पर तीन प्रकार के अरिहंत कहा है (१) अवधिज्ञानी अरिहंत (गृहस्थावस्था) (२) मनःपर्यव अरिहंत (छदमस्थ दीक्षा अवस्था) (३) केवली अरिहंत, केवलावस्था, इससे भी यही सिद्ध होता है कि छदमस्थावस्था में भी अरिहंत शब्द से ही संबोधन करते थे पर अरिहंत चैत्यको किसी स्थान पर छदमस्थ अरिहन्त नहीं कहा है और आदि तीर्थंकर ऋषभदेव के साधु लोगस्स द्वारा २३ भावी तीर्थंकरों को वन्दन करते हैं इत्यादि । यदि आप अपनी कल्पना नुसार कहो तो भी छहमस्थ तीर्थकर को साधु पद में कह सक्ते हो पर छदमाथ तीर्थकर को दूसरे शरण में अरिहंत का चैत्य में तो किसी हालत में समावेश नहीं कर सकते हो।
आगे सूत्रों में चार शरणा कहा है उसमें भी छदमस्थ अरिहंत का अलग शरणा नहीं बतलाया है जैसे कि तीन शरणा चमरेन्द्र का इस प्रकार है ___ अरिहंत, अरिहंत का चैत्य अनगार
अरिहंतों का शरण इसका अर्थ ही साधु काशारणा धर्मका शारणा
नहीं हुआ । सिद्धों का शरणा
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