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प्रकरण चतुथ जैनागमों में प्रशाश्वति मूर्तियाँ ।
आत प्रकरण में हमने जैनागमों और विशेष स्था० साधु
___ अमोलखर्षिजी कृत हिन्दी अनुवाद द्वारा देवलोकों में शाश्वति जिनप्रतिमाओं की पूजा और पूजा का फल क्रमशः मोक्ष होना सिद्ध कर बतलाया है। अब इस प्रकरण में अशाश्वति मूर्तियों के लिये भी ऋषिजी के सूत्रों के अनुवाद से ही साबित करेंगे।
प्रत्येक उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी में चौवीस चौवीस तीर्थकर होते हैं, इस नियमानुसार इस अवसर्पिणी में भी धर्म प्रवर्वक चौवीस तीर्थकर हुए जिनमें आदि तीर्थंकर श्री ऋषभदेव थे । आपने युगलीक धर्म का निवारण कर कर्म भूमि अर्थात् असी मसी कृसी रूप कर्म बतला कर नीति धर्म चलाया बाद
आपने स्वयं दीक्षित हो केवल्य ज्ञान प्राप्त कर धर्म मार्ग प्रचलित किया, तीर्थंकरों को कैवल्यज्ञान होता है तब वे चतुर्विध श्रीसंघ का स्थापना कर गणधरों को त्रिपदी का ज्ञान देते हैं और वे गणधर द्वादशाङ्गों की रचना करते हैं ! उसमें स्वर्ग नर्क मृत्युलोक के अवस्थित भावों का वर्णन जो अनादि काल से चला आया है वह जनता को ज्यों का त्यों सुना देते हैं। इसमें देवलोकादि में शाश्वता मंदिर जिनप्रतिमाओं की पजा और पजा का फल
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