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अकरण तीसरा
६० नहीं है तू आराधिक जिनाज्ञा पालक है परन्तु विराधिक नहीं है तूं चरम है यह देव सम्बन्धी अन्तिम भव है परन्तु अचरम नहीं है ।
श्री गयप्पसेणीसत्र पृष्ट ५६ सम्यग्दृष्टि जीव कामदेव को कामदेव समझ कर पूजा करे तो भी उसको मिथ्यात्वी कहा जाता है तब तीन ज्ञानयुक्त महाविवेकी, भगवान् के पूर्ण भक्त, सम्यग्दृष्टि देवता कामदेव की मूर्ति को वन्दन नमस्कार कर सत्रहभेदी,पूजा करे एवं नमोत्थुणं के पाठ से कहे "तिन्नाणं तारयाणं, बुद्धाणं बोहगयाणं, मुत्ताणं मोयगयाणं" इत्यादि प्रार्थना करे और भगवान उनको सम्यग्दृष्टि, आराधी, परत संसारी, सुलभबोधी, भवि और चरम कह दें क्या ऋषिजी की आत्मा इस बात को मंजूर कर लेगी ? कदापि नहीं। ____ वास्तव में देवलोकों में शाश्वति जिनप्रतिमा हैं वे सब तीर्थङ्कों की है और देवता उन प्रतिमाओं की द्रव्य भाव से पूजा करते हैं वे केवल आत्मकल्याण अर्थात् मोक्ष के लिये ही करते हैं और यही भावना सम्यग्दृष्टि देवता के उत्पन्न होने के समय से अन्त तक रहती हैं खास शास्त्रकार इस बात का इस प्रकार प्रति'पादन करते हैं जरा ध्यान लगा कर देखिये
तएणं तस्स सूरियाभस्स देवस्स पंचविहाते पज्जती पजत्तिभावंगयस्स सामाणस्स इमेयारूवे अझ थिएचित्तिए पत्थिए मोगएसंकप्पे समुप्पज्जित्था कि मे पुलिंबकरणिज्ज, किंमे पच्छाकरणिज्जं, किंमे पुब्बि सेयं, किंमे पच्छसेयं किंमे पुब्बि पच्छावि हियाए सुहाए रकमाए निस्सेसए अणुगमित्ताए भविस्सइ ?
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