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________________ जिनप्रतिमा की पूजा कर छोड़े, बन्धन मुक्त होने से वे बाल बिखरते हैं इस प्रकार वहाँ दिव्य देव के लाये पाँचों वर्ण के फूल स्थापन किये फूल का ढगला मनोहर किया, करके जिनप्रतिमा के आगे निर्मल रूपमय श्वेत घटारा मटारा चाँवल के आठ २ मंगल आलेखे, चित्र किये तद्यथा-स्वस्तिक यावत् दर्पण ।१६। तब फिर चन्दनप्रभ रत्नमय, वैडूर्य रत्नमय निर्मल हैं दंड जिसका, सुवर्ण मणिरत्नों से विविध भाँति के चित्रों से चित्रा हुआ ऐसे धुपड़े में कृष्णागर प्रधान, कुन्दरूक सिल्हारस धूप मघमघायमान गन्धवाला धूप क्षेप कर वैडूर्यमय कुडछा को ग्रहण किया, सावधान पने धूप दिया जिन प्रतिमा को,और १०८ विशुद्धगाथा कर पुनरुक्त दोष रहित गाथा कर महत्ववाली गाथा कर स्तुति की,सात आठ पाँव पीच्छा सरका पीछा सरकाकर डावा ढोंचन को खेंचकर खड़ा रक्खा दाहिना ढींचन धरनीतल में स्थापन किया तीन वक्त मस्तक जमीन को लगाया नीचे लगाकर कुछ मस्तक ऊपर रखकर दोनों हाथ जोड़कर मस्तक पर आवर्तन कर मस्तक पर स्थापन कर यों बोला-नमस्कार हो अरिहन्त को यावत् मुक्ति प्राप्त होवे उनको यों वन्दन नमन किया। श्री गयप्पमेनी सूत्र पृष्ट १६८ से १७२ इस पूजा में सम्यग्दृष्टि देवता नमोत्थुणं अरिहन्ताणं यावत् संपताणं कहा है और ऋषिजी भी इसका हिन्दी अनुवाद करते हुए कहते हैं कि-"नमस्कार हो अरिहंतो को यावत् मुक्ति प्राप्त हुये उनको यों वन्दन नमस्कार किया" क्या हमारे ऋषिजी काम देव को अरिहंत यावत् मुक्ति प्राप्त हुये समझते हैं। अफसोस ! अफसोस !! और अफसोस !!! शायद् ऋषिजी हमेशा नमोत्थुणं देते हैं वह भी कामदेव को ही तो न देते हों ? क्योंकि सूर्याभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003204
Book TitleMurtipooja ka Prachin Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundarvijay
PublisherRatna Prabhakar Gyan Pushpmala
Publication Year1936
Total Pages576
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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