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सत्य प्ररूपणा की ओर
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कहे जाते हैं। समेत शिखर पर बीस तीर्थकरों का निर्वाण हुआ, श्री नेमिनाथ भगवान का निर्वाण गिरनार पर्वत पर हुआ, श्री आदिनाथ भगवान श्रष्टापद पर मोक्ष गये और पांडवों का निर्वाण श्री शत्रुजय तीर्थ पर हुआ, श्री वासुपूज्य स्वामी का निर्वाण चम्पानगरी में हुआ और अन्तिम तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी पावापुरी में मोक्ष पधारे ऐसा जैन शास्त्रों से प्रमाणित होता है और यह जैन तीर्थों के नाम से विख्यात हैं श्वेताम्बर और दिगम्बर मत के अनुयायी प्रति वर्ष हजारों की संख्या में इन तीर्थों की यात्रा करते और पूजा प्रभावना से अपने मानव भव को सफल करने का ध्येय प्राप्त करते, जब कि हम तीर्थ और तीर्थंकर की प्रतिमा इन दोनों से ही बहिष्कृत हैं । हमारा तो यही परम धर्म है कि येन केन उपायेन मूर्ति की उत्थापना करना, और बस ।
श्री आत्मारामजी महाराज के इस सारगर्भित विवेचन से श्री विश्नचन्द और उनके शिष्य वर्ग को बडी प्रसन्नता हुई और आपको सविधि वन्दना नमस्कार करके आपकी सत्यनिष्ठा की भूरि २ प्रशंसा करते हुए आपसे अलग हुए। इधर श्री आत्मारामजी भी दिल्ली से अन्यत्र विहार कर गये।
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