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________________ anREAM ६२ नवयुग निर्माता गुरुदेव ! आप श्री के सदुपदेश का मेरे हृदय पर बहुत गहरा असर हुआ है और मैंने जो बात इस समय आपसे की है वह तो कुतूहल वश की है एवं अपने मन को दृढ़ करने की इच्छा से की है, अब भी एक बात मनमें और रही हुई है जिसके पूछने की फिर धृष्टता करता हूँ। आपको, मूर्ति पूजा करने वाले को जड़पूजक कहना कुछ उचित प्रतीत नहीं हुआ, परन्तु इसके उत्तर में आपने अपने आपको, मेरे को और साथ में सब ढूंढक मतानुयायियों को जड़पूजक होने का उपालम्भ दिया जो कि अभीतक मेरी समझ में नहीं आया, कृपा करके इस पर कुछ प्रकाश डालें ? आत्माराम जी-ज़रा ठंडे दिल से सुनो और शांति से उस पर विचार करो ? श्राप साधु कहलाते हो, अगर आपका मुख मुंहपत्ती से बन्धा हुआ न होवे, और पास में [रजोहरण को हाथ में लेकर दिखाते हुए ] यह रजोहरण न हो तो क्या आप या आपको साधु मानने वाले आपके भक्तजन आपको साधु मान कर बन्दना नमस्कार कर सकते हैं ? चम्पालाल-नहीं महाराज ! कभी नहीं जिसके पास साधु का वेष न हो तो उसे साधु कैसे माना जासकता है और बन्दना नमस्कार भी कैसे की जावे ? आत्माराम जी-तब भाई तुम ही कहो कि मुंहपत्ती और रजोहरण क्या चीज है ?जड़ है या चेतन ? चम्पालाल-(कुछ शरमिन्दा सा हुआ हुआ) बस कृपानाथ ! मैंने आपके अभिप्राय को समझलिया, इस हिसाब से तो हम ही क्या सारी दुनिया ही जड़पूजक हो सकती है। आत्मारामजी-तभी तो मैंने तुमसे कहा था कि वस्तु तत्त्व का यथार्थ स्वरूप समझे बिना साधु को एक दम मुंह से ऐसा शब्द न निकालना चाहिये जिससे दूसरे के मन को आघात पहुंचे। संसार में ऐसा कोई भी मत या पंथ नहीं जो मूर्तिपूजा का प्रतिषेध करसके । वैसे अपने कदाग्रह से कोई चाहे कुछ भी कहे यह उसको अखत्यार है । मुसलमानों को देखो-जो कि मूर्ति विरोधियों में सब से मुख्य माने जाते हैं-कुरान शरीफ का कितना अदब करते हैं, उसे खुदा का कलाम समझते और सिर पर उठाते हैं । जमीन पर नहीं धरते एवं नापाक-अपवित्र हाथों से छूते नहीं । अब तुमही बतलाओ कि कुरान में सिवाय कागज और स्याही के और क्या है ? इसके अतिरिक्त मक्के में जाकर वहां पर रक्खे हुए संगे अस्वद को बोसा देते हैं। संगे अस्वद एक पाषाण विशेष के सिवाय और कुछ नहीं । ताजिये क्या हैं बांस और सुन्दर कागजों से तैय्यार की गई अमुक प्रकार की मूर्ति विशेष ही तो हैं, यदि कोई उसका अणु मात्र भी अपमान करदे तो शिया पक्ष के मुसलमान मरने मारने को तैय्यार हो जाते हैं। क्यों ? इसलिये कि उन ताजियों को वे अपने पूज्यपुरुष हसन हुसैन आदिकी प्रतीक समझते हैं । यही दशा ईसाइयों की है उनका एक पक्ष तो ईसा और मरियम की मूर्ति का उपासक है, दूसरा जो मूर्ति विरोधी है वह भी कुरान की भांति अंजील को खुदा का कलाम कहता हुआ उसका अधिक से अधिक सम्मान करता है । इधर अपने सिक्ख भाइयों की ओर निहारिये-कहने को तो वे भी अपने को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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