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नवयुग निर्माता
सद्भावना से तुमको अभ्यास कराने का प्रयत्न किया है। मेरी अन्तर्गत सद्भावना को तुम्हारे हाथ से मूर्त स्वरूप प्राप्त होने की मुझे पूर्ण आशा है।
___आत्मारामजी-आपने मुझे जिस हित-बुद्धि से जैन धर्म का मर्म समझाने की कृपा की है और आज मुझे आपसे जो आशीर्वाद मिला है उससे मेरी आत्मा में रही सही कमजोरी भी जाती रही । अब मुझे अपने आगामी जीवन का कार्यक्रम बनाने में कोई अडचन नहीं रहेगी।
इसके अतिरिक्त मेरी इच्छा तो अभी कुछ समय और आपकी सेवा में बिताने की थी परन्तु गुरुजी की आज्ञा जल्दी से जल्दी पंजाब पहुँचने के लिये आई है अतः आपसे पृथक् होने के लिये विवश हो रहा हूँ । कृपा भाव बनाये रक्खें । इतना कहकर आप वहां से विदा हो गये पंजाब के लिये ।
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