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जिज्ञासा पूर्ति की ओर
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वेग का आरम्भ हुआ। जिस मातृभूमि ने आज से दश वर्ष पूर्व जीवन के विकास मार्ग की ओर प्रस्थित होने का संकेत किया था वही आज उस मार्ग में उचित संशोधन करने की सबल प्रेरणा दे रही है। यही तो है हितचिन्तक मातृजनोचित साधुकर्तव्य की सजीव झलक ! अस्तु ।
____हां ! इस सन्दर्भ में एक बात का जिकर करना रह गया जो कि इससे पूर्व ही किया जाना चाहिये था। पूज्य अमरसिंहजी के शिष्य श्री विश्नचन्द और रामवक्षजी आदि साधुओं ने अपने गुरु के पास जाने के लिये मारवाड़ की ओर विहार करते समय आपसे कहा-महाराज ! आप जानते हैं कि इस समय पंजाब में अजीव पंथ $ का कितना ज़ोर है ? यदि इसका प्रतिरोध न किया गया तो अपने सम्प्रदाय को बहुत धक्का लगेगा। हमारे देखते देखते इस मत के अनुयायियों की संख्या में काफी वृद्धि होगई है। वे सब अपने में से ही जारहे हैं इस लिये इस मत की जड़ को खोखला करने अथच इसका समूल नाश करने की ओर अवश्य प्रयास होना चाहिये । परन्तु यह काम किसी साधारण व्यक्ति के करने का नहीं इसे तो आप जैसा प्रतिभा सम्पन्न प्रभावशाली महापुरुष ही कर सकता है । अतः हमारी आपसे सानुरोध प्रार्थना है कि आप इस ओर अवश्य ध्यान दें और इस पन्थ का समूनोन्मूलन करने के लिये कटिबद्ध हो जाँय इससे हमारे गुरुजी को बहुत प्रसन्नता होगी और आपका यश फैलेगा । परन्तु इसके उत्तर में आपने-“देखा जायगा” केवल इतना ही कहकर अपने गंतव्य स्थान की ओर प्रस्थान कर दिया । भला ! जिस महापुरुष की प्रकाश बहुल दृष्टि में जीव और अजीव दोनों ही पन्थ कुपन्थ अथच हेय प्रतीत होते हों उसके सन्मुख इस नगण्य प्रार्थना का क्या मूल्य ?
पंजाब देश में ढूढ़कों के दो फिरके हैं। एक अनाज में जीव मानता है जबकि दूसरा नहीं मानता, जो नहीं मानता वह अजीब पंथ के नाम से प्रसिद्ध है।
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