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________________ अध्याय ४ जिज्ञासा पूर्ति की ओर - - ऊपर उल्लेख की गई विवेकगर्भित मानसिक मंत्रणाओं को क्रियात्मक रूप देने के लिये उपयुक्त समय की प्रतीक्षा में श्री आत्माराम जी ने गुजरात देश की ओर प्रस्थान करने का विचार किया। उन्होंने प्राचीन जैन परम्परा के सुप्रसिद्ध शत्रुजय-सिद्धाचल और उज्जयन्त-गिरनार आदि तीर्थों की बहुत प्रशंसा सुन रक्खी थी, उनको देखने एवं उस प्रदेश में रहने वाले विद्वान जैन मुनियों से मिलने और उनसे धर्म सम्बन्धी वार्तालाप करने की बहुत इच्छा थी। परन्तु आपके गुरु श्री जीवन राम जी ने उधर जाने की आज्ञा नहीं दी । इसलिये रतलाम का चतुर्मास समाप्त होने के बाद आपने गुजरात की ओर प्रस्थान न करके चित्तौड़ की ओर विहार कर दिया। रास्ते में जावरा मंदसोर नीमच और जावद वगैरह शहरों में होते हुए चित्तौड़ पहुँचे। यहां पर कुछ दिन ठहरकर चित्तौड़ के पुराने किले के खंडहरों को देखा जो कि प्राचीन आर्य संस्कृति के चित्रकला प्रधान अतीत गौरव का स्मरण करा रहे थे । भग्नावशेष जैन मंदिर फतेपुर के महल, ऊंचे कीर्तिस्तंभ, प्राचीन जलकुंड, सुकोशल मुनि की तपो-गुफा, पद्मिनी की सुरंग और सूर्य कुण्ड प्रभृति अनेक प्राचीन भग्नावशेषों को देखते हुए भारतीय संस्कृति के अतीत गौरव के साथ २ सांसारिक वस्तुओं की असारता और अस्थिरता का भी प्रत्यक्ष अनुभव कर रहे थे । वहां से उदयपुर, नाथद्वार, कांकरोली, गंगापुर, भीलवाड़ा, सरवाड़, जयपुर, भरतपुर, मथुरा और वृन्दावन आदि स्थानों की यात्रा करते हुए कोशी के रास्ते से दिल्ली पधारे । अापकी इच्छा तो यहीं पर चौमासा करने की थी परन्तु गुरुवर्य श्री जीवन राम जी के अनुरोध से यह चतुर्मास दिल्ली के बदले आपने "सरगथला ग्राम में किया, जिससे वहां की जनता को आपके सदुपदेश से बहुत लाभ मिला । विक्रम सं० १६१७ के इस चतुर्मास को सम्पूर्ण करके आप फिर दिल्ली में आये । यहां से विहार करके यमुना पार खट्टा, लुहारा,बिनौली, बडौत और सोनीपत्त आदि शहरों में विचरने के बाद १६१८ का चतुर्मास आपने दिल्ली में किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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