________________
नवयुग निर्माता
कहीं मैं भी इसी श्रेणी का विद्यार्थी तो नहीं ? लगता तो ऐसा ही है, परन्तु इन बातों का निर्णय तो तभी हो सकेगा जब कि मैं व्याकरण आदि शास्त्रों में सम्यग् निष्णात होने के अनन्तर जैन परम्परा के मौलिक साहित्यका उसके भाष्य और टीका आदि के साथ तुलनात्मक दृष्टि से स्वाध्याय करू और फिर देखें कि तथ्य क्या है ? एवं वीर प्रभु के उपदेश का वास्तविक प्रतिनिधित्व किस में है ? मेरी ढूंढक परम्परा में या दूसरी संवेगी जैन परम्परा में ? मगर इसके लिये कुछ समय अपेक्षित है जो कि अभी दूर है, फिर भी इसे निकट लाने का प्रयत्न तो चालू रखना ही चाहिये ।
कणका
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org