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'नवयुग निर्माता
धन्न धन्न सूरिराज होये जैन के जहाज, सुधारे धर्म के बहु काज,
अब कौन डंका ला वेगा, श्री गुण ज्ञान भंडार ॥ ३ ॥ स्वामीजी० ।। मुनि सार्थवाह प्यारे, जीव लाखों ही सुधारे, चंद दर्शनी दिदारे,
नहीं सोई पछतावेगा, अब होगई हाहाकार ॥ ४ ॥ स्वामीजीः ।। जैसे सूरज उजारे, मत मिथ्यात निवारे, मिटे अन्धकार सारे,
___ कौन चांदना दिखावेगा, दास खुशी कैसे धार ।। ५ ।। स्वामीजी० ॥
भजन (३) बिना गुरुराज के देखे मेरा दिल बेकरारी है | अंचली ।। आनन्द करते जगत जनको वयण सतसत सुना करके ॥ १ ॥ तनुजस शान्त होया है किया जिस दर्श आ करके ।। २ ।। मानो सुर सूरि आये थे भुविनर देहधर करके ॥ ३ ॥ राज अरु रंक सम गिनते, निजातम रूप सम करके ॥ ४ ॥ महा उपकार जग करते फनाह तन को समझ करके ।। ५ ।।
जीवा बल्लभ चाहता है नमन हो पांव पर करके ।। ६ ।। बिना० ॥ जहां पर आचार्यश्री का अग्नि संस्कार किया गया वहां पर एक ऐसे भव्य और विशाल समाधि मन्दिर का निर्माण हुआ जो कि आज भी रास्ते चलने वाले मुसाफर मात्र को अपनी ओर आकर्षित करता हुआ मौन भाषा में एक नवयुग प्रवर्तक महान तेजस्वी, शासन रसिक महापुरुष की पुण्यमयी यशोगाथा को सुना रहा है-उसकी अमर कीर्ति का सन्देश दे रहा है ।*
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* जिस समय प्राचार्य श्री विजयानन्द सूरि श्री अात्मारामजी महाराज स्वर्ग सिधारे उससे काफी समय पहले अष्टमी लग चुकी थी इसलिये श्रापश्री की निर्वाण तिथि अष्टमी है, अष्टमी को ही श्रापकी जयन्ती मनाई जाती है और मनाई जानी चाहिये । (ले० )
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