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________________ गुजरांवाला में सदा के लिये ४१३ और सबको अन्धकार ही अन्धकार दिखाई देने लगा। प्रातःकाल होते ही लाहौर, अमृतसर, जालन्धर, जंडयाला, होशयारपुर, लुधियाना, अम्बाला, जीरा और मालेरकोटला आदि शहरों का श्रावक समुदाय पहुँच गया । सबके चेहरै फीके पड़े हुए थे । सबकी आंख अपने प्रिय गुरुदेव के वियोग में अश्रुधारा बहा रही थीं। सबके मुख से हा गुरुदेव! हा गुरुदेव !! के सिवा और कुछ नहीं निकलता था । अन्त में एक बड़ी अच्छी तरह से सजाये हुए देव विमान तुल्य विमान में प्रतिष्ठित करके गुरुदेव को अग्नि संस्कार के लिये लेजाया गया और चन्दन की चिता में विराजमान करके आपके शरीर को अग्नि के सपुर्द कर दिया गया। अग्नि संस्कार से पहिले प्रापश्री के विमान को बड़ी धूमधाम से नगर में फिराया गया था। जिसके साथ में अनेक बैंड बाजे और अनेक भजन मंडलियां गुरुदेव के गुणानुवाद करती हुई आगे २ जा रही थीं। उस समय पर गाये जाने वाले भजनों में से कुछ एक नीचे उद्धृत किये जाते हैं - भजन (१) हेजी तुम सुनियो प्रातम राम ! सेवक सार लीजो जी ! (अंचली) आतमाराम आनन्द के दाता, तुम बिन कौन भवोदधि त्राता। हुँ अनाथ शरणी तुम श्रायो, अब-मोहे हाथ दीजो जी ॥१॥ तुम बिन साधु सभा नवि सोहे, रयणीकर बिन रयणी खोहे। जिम तरणी बिन दिन नही दीपे, निश्चय धार लीजो जी ॥२॥ दीन अभाव हुँ चेरो तेरो, ध्यान धरूं मैं निसदिन बेरो। अबतो काज करो गुरु मेरो, मोहे दीदार दोजो जी ।। ३ ।। करी सहाय भवोदधि तारो, सेवक जनको पार उतारो। बार बार विनति यह मेरी, वल्लभ तार दीजो जी ।। ४ ॥ भजन (२) सतगुर जी मेरे दे गये आज दीदार, स्वामी जी मेरे दे गये आज दीदार । ___ श्री श्री प्रातमराम सुरीश्वर विजयानन्द सुखकार । ( अंचलि) गुरु हुए निर्वाण संघ होगया हैरान कूट गया मनमान, - ज्ञान ध्यान कैसे आवेगा। अब उपजिया शोक अपार ॥ १॥ स्वामी जी मेरे ॥ ये गंभीर धुन वानी, जिनराज की बखानी, गुरुराज की सुनानी, ऐसे कौन सुनावेगा,अब किसका मुझे आधार ॥ २॥ स्वामीजी०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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