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________________ ४१२ नवयुग निर्माता वायदा किया था तब इतने में क्या पत्थर पड़गये ! आकर देखा तो इस कठोर सत्य ने उसके हृदय को भी हिमा दिग। सामने श्राकर दर्शन किये और मस्तक झुकाकर प्रणाम करने के अनन्तर रुंधे हुए कंठ से बोला महात्माजी ! आप हम लोगों को दगा देगये, अच्छा आपकी मर्जी । इतना कहते हुए उसकी आंखों से आंसू गिरने लगे। __आपश्री के वियोग में विह्वल हुए आपके सेवकजन फूट २ कर रोने लगे। आपके शिष्यवर्ग की दशा तो इतनी करुणाजनक थी कि उसका चित्रण इस लेखिनी की परिधि से बाहर है । आपके सेवकों की दशा भी अत्यन्त करुणाजनक थी। कोई कहता महाराज ! यह आपने क्या किया ? हम अनाथों को अब कौन संभालेगा ? कोई काल को उपालम्भ देता हुआ कहता-अरे दुष्ट काल ! हमने तेरा क्या बिगाड़ा था जो तूने हमारे सिर का ताज हमसे छीन लिया । तब एक सद्गृहस्थ ने गुरुदेव के समीप आकर कहागुरुदेव ! हमको आज पता चला कि आपके मुखारविन्द से निकलने वाले शब्दों में कोई न कोई रहस्य जरूर छिपा रहता था, हम लोग कई बार गुजरांवाला पधारने के लिये आपके चरणों में विनति करने को आये मगर आप नहीं पधारे। जब हमने दुबारा तिवारा विनति की तो आपश्री ने फर्माया कि "भाई ! तुम लोग क्यों चिन्ता करते हो आखीर में तो हमने बावाजी के प्रियक्षेत्र गुजरांवाला में ही बैठना है।" मगर उस वक्त तो हम लोग आपके इन रहस्यपूर्ण शब्दों को समझ नहीं पाये परन्तु आज उनका परमार्थ समझ में आया । गुरुदेव ! आपने तो अपना कथन सत्य कर दिखाया मगर हम लोगों का ......."इतना कहते ही वह रुद्धकंठ होकर चरणों में गिरपड़ा । सारांश कि जो कोई भी आता वह अपने हृदय की व्यथा को अपने शब्दों में यक्त कराता मेगर यह सब अरण्यरोदन के समान व्यर्थ ही था। कितना ही विलाप करो कितना ही माथा टो अन्त में बनता कुछ नहीं । बड़े बड़े तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलदेव और वासुदेव आदि किसी को भी काल ने ही छोड़ा-किसी कवि ने सत्य ही कहा है कगताः पृथिवीपाला:, ससैन्यबलवाहनाः । वियोगसाक्षिणी येषां भूमीरद्यापि तिष्ठति ।। अस्तु रातोंरात तार द्वारा आपके स्वर्गवास का दुःखद समाचार देश देशान्तर में भेज दिया गया, माचार मिलते ही सब एकदम चकित से रह गये । परन्तु किसी को विश्वास नहीं आया, सब यही नने लगे कि यह किसी विद्वेषी की करतूत है | भिन्न २ शहरों से वापस तार आये कि जल्दी पता दो i विश्वास नहीं आता। तब दोबारा तार किये गये कि वास्तव में ही गुरुदेव हमसे सदा के लिये जुदे गये । बस फिर क्या था सारे पंजाब में शोक की चादर बिछ गई । घर २ में मातम छा गया। चारों पहले भी एक दो बार ऐसा झूठा समाचार किसी ने दे दिया था इसलिये किसी को विश्वास नहीं पाता था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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