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________________ गुजरांवाला में सदा के लिये ४११ हो तो उसके लिये मैं "मिच्छामि दुक्कड" देता हूँ-क्षमा मांगता हूँ। तुम लोगों से मेरा अन्तिम निवेदन यही है कि मेरे अधूरे रहे काम को पूरा करने का भरसक प्रयत्न करना और आपस में मेल मिलाप रखना । मुझे अरिहंत देव और सिद्ध भगवान् का, जिन्होंने कर्मरूप शत्रुओं का समूल नाश करके कैवल्य विभूति को प्राप्त किया है-कल्याणकारी शरणा है, मुझे मोक्ष देने वाले परम पवित्र जैनधर्म का शरणा है । इस प्रकार शरणा लेकर फिर ध्यानारूढ़ हो गये । कुछ क्षणों के बाद आँखें खोली और सामने बैठे हुए साधु और श्रावकों पर दृष्टि फैकी और सेवक को पुकारा व कहा-वल्लभ ! लुधियाने वाली बात याद है न ? हां गुरुदेव ! अच्छी तरह से याद है ? मैंने रुद्धकंठ से उत्तर दिया। गुरुदेव-उसका पूरा पूरा ध्यान रखना । ज्ञान के बिना लोग धर्म को नहीं समझ पावेंगे। बहुत अच्छा गुरुदेव ! परन्तु मैं इतना कहने ही पाया था कि-लो भाई अब हम चलते हैं और सबको खमाते हैं "ॐ अर्हन बोलते हुए-सदा के लिये अन्तर्ध्यान हो गये !!! आपश्री का यह स्वर्गवास, केवल गुजरांवाला या पंजाब के जैन समाज के लिये ही नहीं अपितु समस्त भारतवर्ष के जैन समाज के लिये अथच पूर्व और पश्चिम के शास्त्राभ्यासी और धर्म रसिकों के लिये भी कल्पना में न श्रासके ऐसी शोकप्रद घटना बन गई । जो कोई भी सुनता वह चकित और अवाक् सा रहजाता । अभी कल शाम को तो आप प्रसन्न वदन से सब के साथ बातें कर रहे थे । इतने में क्या हो गया ? नहीं यह बात झूठी होगी । परन्तु आखीर में सबको इस कठोर सत्य के सामने झुकना पड़ा । शोक ! महाशोक !! जैन समाज का सिरताज यहां के समाज को अनाथ करके स्वर्ग को सनाथ बनाने के लिये चला गया । प्रातःकाल होते ही सारे शहर में हाहाकार मचगया । जिसने भी सुना वही उपाश्रय की ओर भागा चला आया । हिन्दु से लेकर मुसलमान तक शायद ही ऐसा कोई अभागा व्यक्ति शहर में रह गया होगा जिसने इस महातपस्वी महापुरुष के अन्तिम दर्शनों के लिये अपने आपको वहां उपस्थित न किया हो । जो कोई भी देखता वह यही कहता इन महात्मा ने तो समाधि धारण कर रक्खी है, देखो तो चेहरे पर किसी प्रकार का फर्क पड़ा है ? वैसा ही तेज वैसी ही आभा है । इनको स्वर्गवास करगये कहना हमें तो भूल भरा प्रतीत होता है । सारांश कि एक बार तो देखने वाले को भ्रम अवश्य हो जाता। . ___ स्कूल में छुट्टी होने के कारण एक मास्टर आपके दर्शन करने और कल शामकी अधूरी रही बात चीत को पूरी करने के लिए आपके पास आरहा था। इतने में उसके कानमें आपश्री के स्वर्गवास की आवाज पडी तो वहां खड़े का खड़ा ही रह गया ! वह कहने लगा कि क्या यह खबर सत्य है या किसी दुश्मन की उड़ाई हुई झूठी है ? कल शामको तो हमलोग उनसे काफी देर तक बातें करते रहे और आज आनेका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org,
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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