________________
सनखन्तरे का प्रतिष्ठा महोत्सव
1
यहां का मंदिर देखकर आपको बड़ा आनन्द प्राप्त हुआ । यह मंदिर सारे पंजाब में अपनी किसम का एक ही है । मंदिर को देखते ही शत्रुञ्जय तीर्थराज की श्री आदीश्वर भगवान् की भव्य टोंक का स्मरण हो जाता है, उसी ढब पर इस मन्दिर का निर्माण हुआ है । मन्दिर की सीढ़ियों पर चढ़ते हुए तभी तो आचार्यश्री ने सेवक से कहा था, अरे वल्लभ ! क्या हम शत्रुञ्जय पर चढ़ते हैं ? तात्पर्य कि इस मन्दिर का नक्शा भी सिद्धगिरि पर विराजमान श्री ऋषभ देव भगवान की टोंक जैसा ही है।
आचार्य श्री के पधारने पर सनखतरा के श्रावक समुदाय में एक नये ही उत्साह की लहर जाग उठी ! वह आनन्द विभोर होकर पूरे उत्साह के साथ प्रतिष्ठा के कार्य में एक मन होकर जुट गया ।
४०५
प्रतिष्ठा महोत्सव [ सैकड़ों प्रतिमाओं की अंजनशलाका ] में पधारने के लिये पंजाब, मारवाड़, गुजरात, काठियावाड़, मालवा और यू० पी० आदि देशों के प्रसिद्ध २ सभी नगरों में आमंत्रणपत्र भेजे गये । उन आमंत्रणपत्रों को बांच कर कपडवंज के श्रावक शाह शंकरलाल वीरचन्द और अहमदाबाद के श्रावक ठाकुरदासजी आचार्यश्री के हाथ से अंजनशलाका के लिए बहुत से नवीन जिनबिम्बों को लेकर सनखतरे आये । सनतरे के श्रावक अभी उनकी रिहायश का प्रबन्ध कर ही रहे थे कि इतने में बम्बई के सेठ श्री तिलकचन्द माणिकचन्द जे. पी. की तरफ से भेजे गये - श्री मणिलाल छगनलाल भी कितने एक जिनबिम्ब लेकर आ पहुँचे और इनके साथ ही श्री शत्रुंजय तीर्थ पर के श्री मोतीशाह के कारखाने से अंजनशलाका के निमित्त नवीन जिनबिम्बों को लेकर वहां का माली और पुजारी भी आये । तथा बड़ोदेवाले गोकुलभाई. दुल्लभदास और छाणी के नगीनदास गड़बड़दास भी प्रतिष्ठा विधि के निमित्त आये और आते हुए बड़ोदा, अहमदाबाद, मैसाणा, छाणी, वरतेज, जयपुर और दिल्ली आदि शहरों के श्रावकों के बनवाये हुए बहुत सेम और पाषाणमय जिनबिम्बों को अंजनशलाका के लिये साथ में लाये। कुल मिलाकर २७५ जिनबिम्ब अंजनशलाका के लिये लाये गये । इनको सनखतरा के मन्दिर में तीन वेदियों पर विराजमान किया गया और इनके मूलनायक तरीके श्री ऋषभदेवजी को प्रतिष्ठित किया गया था। मूलनायक सहित तीनों वेदियों में विराजमान दर्शनीय जिनबिम्बों को देखकर उस वक्त तीर्थराज श्री शत्रुंजय पर के सिद्धघरे की याद ताजा हो आई थी, आचार्यश्री की देख रेख नीचे श्री वर्द्धमानसूरि विरचित आचार दिनकर के अनुसार श्री गोकुल भाई और नगीनदासजी ने विधिपूर्वक सबका अंजनशलाका रूप संस्कार कराया। मुहूर्त के समय आचार्यश्री ने श्री धर्मनाथ को मन्दिर की वेदी पर प्रतिष्ठित कराया। इस प्रकार बाहर से आये हुए जिनबिम्बों की अंजनशलाका और मंदिर में श्री धर्मनाथ प्रभु को प्रतिष्ठित कराकर सनखतरा के श्रीसंघ के मनोरथ को आचार्यश्री ने पूर्ण किया। अंजन शलाक के निमित बाहर से आये जिन बिम्बों में से कितने
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org