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________________ अध्याय ११५ "सनखतरे का प्रतिष्ठा महोसत्व" लुधियाना की जैन जैनेतर सारी जनता ने आचार्यश्री को चातुर्मास रहने की प्रार्थना की और आचार्यश्री का चातुर्मास करने का विचार भी होगया परन्तु इस अवसर में सनखतरा [ जिला स्यालकोट ] के रईस ला० अनन्तराम, गोपीनाथ, प्रेमचन्द और ताराचन्द आदि श्रावकों ने आपश्री के चरणों में उपस्थित होकर अर्ज की कि महाराज ! अम्बाले की प्रतिष्ठा के समय आपश्री ने फर्माया था कि यदि सनखतरे का मन्दिर तैयार होगया हो और प्रतिष्ठा करने का विचार हो तो सं १९५३ को वैशाख शुद्धि पूर्णिमा का मुहूर्त निकलता है, जोकि हर एक दृष्टि से शुद्ध है । इस पर लाला अनन्तरामजी ने कहा था कि मैं सनखतरे जाकर सब भाईयों से सलाह करके आपश्री को पता भेज दूंगा इत्यादि । सो कृपानाथ ! मन्दिर बिलकुल तैयार होगया है और आपश्री के फर्माये हुए मुहूर्त पर ही हम सब प्रतिष्ठा कराने का निश्चय कर चुके हैं वह दिन हमारे लिए बड़ा ही अहोभाग्य का होगा जब कि आपश्री वहां पधार कर इस शुभ कार्य को अपने वरद हाथ से कराने की कृपा करेंगे। हम लोग इस विषय से बिलकुल अनभिज्ञ हैं । प्रतिष्ठा के लिए क्या करना और क्या नहीं करना, यह हम कुछ भी नहीं जानते । इतना तो हमको पूर्ण विश्वास है कि आपश्री के वहां पधारने से हमारा सब कार्य अच्छी तरह से सम्पन्न होगा । इसलिये हम सबकी आपश्री के चरणों में यही प्रार्थना है कि आप प्रतिष्ठा के दिन से महीना दो महीना पहले ही सनखतरा में पधारने की कृपा करें। यही हमारी आपके श्री चरणों में विनम्र प्रार्थना है । सनखतरे के भाईयों की उक्त प्रार्थना को ध्यान में लेते हुए आचार्यश्री ने लुधियाने से बिहार कर दिया और क्रमश: फगवाड़ा, जालन्धर, जंडयाला और अमृतसर होते हुए आप नारोवाल में पधारे। यहां पर अनुमान १५ दिन रहकर प्रतिष्ठा के निमित्त आप सनखतरे में आये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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