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________________ नवयुग निर्माता कहना ही क्या है, वे तो मन ही मन फूले नहीं समाते । जो पुत्र अपनी गुणसम्पत्ति से किसी कोने में छिपे हुए अपने पिता को लोकख्याति का भाजन बनादे एवं जो शिष्य अपनी विशिष्ट गुणगरिमा से जनता में असाधारण ख्याति प्राप्त करता हुआ अपने गुरुजनों के नाम को भी चार चान्द लगादे ऐसे पुत्र और शिष्यरत्न को प्राप्त करने वाला पिता या गुरु अपने आपको कितना भाग्यशाली मानता होगा इसकी मात्र कल्पना ही की जा सकती है हर्षातिरेक से पूरित मनोवृत्ति का शीघ्रगामी प्रवाह अपनी सीमा को पार करता हुआ न जाने कितने अपरिमित क्षेत्र को स्पर्श कर जाता है। मुनि श्री आत्माराम जी ने स्थानकवासी जैन सम्प्रदाय में दीक्षित होने के बाद आजतक अर्थात् इन छै वर्षों में ज्ञानार्जन के लिये कितना परिश्रम किया और उसमें वे कहां तक सफल हुए, इसका दिग्दर्शन करा दिया गया, अब इस से आगे उनकी आगामी जीवन चर्या के पुनीत स्रोत में डुबकी लगाने का भी यत्न करिये । सम्भव है उससे अपना और आपका आन्तरिक कषायमल थोडा बहुत और धुल जावे ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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