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________________ अध्याय ११२ "एक उल्लेखनीय घटना" अम्बाला के इस प्रतिष्ठा महोत्सव में एक बड़ी ही विचित्र घटना का दृश्य उपस्थित हुआ। सुबह रथयात्रा-प्रभु की सवारी निकलने वाली थी उसके लिये सारी तैयारी की जा रही थी। शाम के वक्त अर्थात् चार बजे के करीब क्या देखते हैं, आकाश में चारों तरफ काले बादलों की घनघोर घटायें छा गई ! थोड़ी २ बूंदे भी गिरने लगीं। ___इससे कुछ समय पहले आचार्यश्री कितने एक साधुओं को साथ लेकर बाहर स्थंडिल पधारे और जब स्थंडिल भूमि से वापिस उपाश्रय को आरहे थे तो रास्ते में उनसे आगे आगे तीन चार मुसलिम भाई आपस में बातें करते जारहे थे। उन्हें यह मालूम नहीं था कि उनके पीछे कोई आ रहा है । परन्तु उनकी बातें प्राचार्यश्री को सुनाई दे रही थीं। एक बोला-कि आसमान पर छाये हुए ये काले बादल कभी बरस पड़े तो इन विचारे जैनियों के तो सारे करे कराये पर पानी फिर जायगा । इनका नुकसान तो होगा ही मगर इसके साथ ही इन्होंने जो इतनी बड़ी तैयारी की है वह भी धरी की धरी रह जावेगी और इनके हौसले पस्त हो जावेंगे। इतने में दूसरा बोला भाई तुम्हारी बात तो ठीक है मगर इनकी खुश किस्मती-(सद्भाग्य ) से इनका पीर ( गुरु ) आत्माराम जो कि बड़ा औलिया ( पहुँचा हुआ ) है-यहां पर हाज़र है, इसलिये कोई तशवीशचिन्ता की बात नहीं, तब आकाश को देखते हुए तीसरे के मुख से अचानक ही निकला कि-"या खुदा मेहर कर यह काम तो बाबा आत्माराम का है, जो कि हिन्दू और मुसलमान को एकसी निगाह से देखता है, इसके नाम में तो कभी भी हर्जा नहीं होना चाहिये" इत्यादि इतना कहते हुए ये तो अपने दूसरे रस्ते को [ जिधर उन्होंने जाना था ] हो लिए और आचार्यश्री अपने मार्ग से चलते हुए साधुओं के साथ उपाश्रय में आये । आचार्यश्री के उपाश्रय में पधारने के बाद तुरन्त ही ला गंगाराम, नानकचन्द और बसन्तामल आदि चार पांच मुख्य श्रावक बड़े घबराये हुए उपाश्रय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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