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नवयुग निर्माता
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चातुर्मास की समाप्ति के बाद मार्गशीर्ष शुक्ला पूर्णिमा के शुभ दिन में सम्पन्न होने वाले प्रतिष्ठामहोत्सव के लिये अम्बाला श्रीसंघ की तरफ से तैयारियां होने लगीं । नगर के बाहर एक विशाल मंडप बान्धा गया, मैसाणा (गुजरात) से चान्दी का रथ और बड़ोदे से चान्दी का समोसरण मंगवाया गया, सब शहरों में प्रतिष्ठा महोत्सव पर पधारने के लिये आमंत्रण पत्रिकायें भेजी गई। सिर्फ एक अड़चन थी सो गुरुदेव की कृपा से वह भी दूर हो गई, वह थी भगवान की सवारी को नगर में फिराने के लिये सरकारी आज्ञा का प्राप्त करना । सो वह भी मिलगई ! हरएक व्यक्ति के मन में नया उत्साह और नई उमंगें थीं। गुलालवाड़ा (पंडाल) इतना सजाया गया था कि देखने वाले मुग्ध हो जाते, प्रतिष्ठा महोत्सव में प्राचार्यश्री के प्रभाव से नगर की सारी जनता ने बड़े हर्ष से सहयोग दिया और इतनी धूमधाम हुई कि जिसकी कल्पना भी नहीं थी। निश्चित किये गये शुभ मुहूर्त पर भगवान श्री सुपार्श्वनाथ को पूरे विधि विधान के साथ मंदिर में प्रतिष्ठित किया गया।
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