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________________ - - ३७२ नवयुग निर्माता साधु हैं मान अपमान दोनों ही हमारे लिए हेय हैं । * अन्त में मांगलिक सुनाकर सबको विदा किया। रायकोट से बिहार करके जगरावा होते हुए आप जीरा पधारे। जी। आपकी जन्मभूमि कही जाती है। यहां से हो आपने त्यागमय जीवन का आरंभ किया था और उसमें संशोधन करने के बाद आपने यहां की जनता को सन्मार्ग पर लगाने का यत्न भी किया, इस लिए जीरा निवासियों ने आपका सदैव भव्य स्वागत किया। आपके शिष्य प्रवर श्री विद्योत विजयजी ने अपने सदुपदेश द्वारा जिन मन्दिर का प्रारम्भ कराया हुआ था। आपश्री के पधारने पर उसके लिए लोगों ने और भी उत्साह दिखलाया। के समय की बलिहारी है आज उसी रायकोट में बना हुआ एक गगनचुम्बी विशाल जिनमन्दिर लोगों को अपनी ओर बलात् आकर्षण कर रहा है और वहां के प्रोसवाल भावडे बडे उत्साह से वहां सेवा पूजा कर रहे हैं और अपने मानव जीवन को सफल बना रहे हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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