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________________ अध्याय १०५ "पट्टी में चातुर्मास" -:* :जीरा से आपने पट्टी की तरफ बिहार किया। पट्टी में श्रावकों के घर कमती होने के कारण वहां अधिक दिन ठहरने का आपका भाव नहीं था किन्तु पट्टी होते हुए अमृतसर जाने का विचार था । एक दिन मालेरकोटला में पंजाब के चौमासा करने लायक क्षेत्रों की गिनती की बात चल पड़ी तो गिनती करते वक्त पट्टी का नाम उनमें नहीं आया तब मैंने -[मुनि वल्लभविजय ने ] आचार्य श्री से पूछा कि-गुरुदेव ! आपश्री ने पट्टी का नाम क्यों नहीं लिया ? मेरे पूछने का अभिप्राय यह था कि जिन पंडित अमीचन्दजी के पास मैं पढ़ा करता था वे पट्टी के रहने वाले थे। गुरुदेव ने उत्तर दिया-कि बोबा ! पट्टी में पंडित अमीचन्द ला० घसीटामल आदि चार पांच श्रावकों के ही घर हैं जो कि चातुर्मास ठहरने के लिये पर्याप्त नहीं । अब जब कि जीरा से बिहार करके आप पट्टी पधारे तो वहां का रंग ही पलटा हुआ देखा । आपका आगमन सुनकर वहां के सैंकड़ों श्रावक बाजे गाजे के साथ करीबन तीन चार मील आगे सरहाली प्राम में स्वागत के लिये सामने आये । और बड़े समारोह के साथ गुरुदेव का नगर में प्रवेश कराया गया । आते ही आपने मंगलाचरण के अनन्तर संक्षेप में धर्मोपदेश दिया। उपदेश की समाप्ति होते ही सब श्रावक वर्ग उठकर खड़ा होगया और सबने हाथ जोड़कर चौमासे की विनति की और बड़े आग्रह भरे परन्तु विनीत शब्दों में कहा कि कृपानाथा! अब का चौमासा यहीं पर करने की स्वीकृति देने का अनुग्रह करो आचार्यश्री उनकी इस प्रार्थना को सुनकर वहुत चकित होते हुए बोले भाइयो ! अभी तो चौमासा में बहुत दिन हैं पहले चौमासे को गुजरे अभी दो महिने के लगभग हुए हैं इसलिये अगले चौमासे का अभी से वचन देना यह तो साधु की शास्त्रीय मर्यादा के प्रतिकूल है। अभी तो पौष का महीना चल रहा है, और अमृतसर के जैन मन्दिर को प्रतिष्ठा वैशाख में कराने का निश्चय किया गया है। प्रतिष्ठा के बाद चौमासे के दिन भी नजदीक पाजावेंगे उस वक्त जैसा ज्ञानी ने देखा होगा वैसा विचार कर लिया जावेगा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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