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मुन्शी अब्दुलरहमान से प्रश्नोत्तर
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और न ही इस प्रकार की कोई क्रिया करते हैं, जिसमें प्रारम्भ समारम्भ हो, तथा एकेन्द्रिय आदि जीवों की हिंसा हो । इसलिये आपका बतलाया हुआ उपाय हमारी साधु मर्यादा से बिलकुल विपरीत है।
मुन्शीजी-महाराज ! अब मुझे पता चला कि आपकी यह भिक्षावृत्ति भीख मांगना नहीं किन्तु परोपकार परायण साधुजनों का यह उचित शास्त्रीय आचार है । आपका यह लोकोपकारी जीवन निस्सन्देह अभिनन्दनीय है । अच्छा अब समय अधिक हो गया, हम लोगों ने आपश्री के पास से बहुत कुछ सीखा है, अब फिर दर्शन करेंगे, सलाम ।
इसके बाद मुन्शी अब्दुलरहमान आचार्यश्री के व्याख्यानों में भी आते रहे वे चिकित्सा का धंधा करते थे और आचार्यश्री के सदुपदेश से उन्होंने आजीवन मांस और मदिरा का परित्याग कर दिया, इसके सिवा उन्होंने अपने सैंकड़ों बीमारों को मांस मदिरा का परित्याग कराया। सत्य है "सतां संगोहि भेषजम् ।
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