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________________ मुन्शी अब्दुलरहमान से प्रश्नोत्तर ३६५ आचार्यश्री-किसी के कहने या सुनने मात्र से क्या होता है ? आप लोगों ने हमारा मन्दिर तो देखा ही होगा उसमें जिसकी मूर्ति विराजमान है वही हमारा वीतराग देव ईश्वर-परमेश्वर परमात्मा या खुदा है। जिसमें किसी प्रकार का दोष नहीं ऐसे निर्दोष सर्वज्ञ सर्वदर्शी परमात्मा के हम उपासक हैं । मुन्शी साहब-तो क्या आप बुतपरस्त हैं ? आचार्यश्री-नहीं हक परस्त -खुदा परस्त ? यदि इसका नाम आपके मत में बुतपरस्ती है तो दुनिया का कोई भी मजहब-मत या सम्प्रदाय इस बुतपरस्ती से नहीं बच सका। मुन्शी साहब-श्राप तो यह अजीबसी बात कह रहे हैं ! सर्व प्रथम हम मुसलमान बुतपरस्त नहीं, आर्य समाज बुत परस्ती के विरुद्ध है और आपका दूसरा फिरका भी बुत परस्ती से इनकारी है। श्राचार्यश्री-यूँ इनकार करना अलग बात है इनकार तो सब करते हैं मगर अमल-आचरण इनका इससे भिन्न है, जिससे इन सब की बुतपरस्ती-[जो कि हमारे विचार के मुताबिक हक परस्ती ही है ] प्रमाणित होती है। सबसे प्रथम श्राप लोग अपने तरफ ध्यान दें। आप लोग मस्जिद को पवित्र और खुदा का घर कहते व मानते हो, जर। विचारो तो सही मस्जिद और दूसरे मकान में लगी हुई ईटों में क्या फर्क है ? आप एक को मुतबर्रक -पवित्र और दूसरे को साधारण मान रहे हो ऐसा क्यों ? इसके सिवा दीवार में मेहराव ( कमान ) की शकल बनाकर उसके सामने नमाज़ पढ़ते हो इसका क्या मतलब ? क्या मेहराव में खुदा बैठा है, आप वहां किसका तसव्वर -ध्यान करते हो ? जब कि आप खुदा को हर जगह और हर दिशा में हाज़रो-नाज़र समझते हो तो केवल मगरिब पश्चिम को मुंह करके नमाज पढ़ने का क्या मतलब ? क्या पूर्व और दक्षिण दिशा में खुदा नहीं है ? दर असल बात यह है, कि जिस मक्का शरीफ को आप अपना पवित्र धाम समझते हो वह मगरिब-पश्चिम में है उसी की ओर मुह करके आप नमाज अदा करते हो, वह भी तो एक बुत ही है बुत नाम शकल का है फिर वह इनसान की शकल में हो या ईट पत्थर के आकार में हो । बुत दोनों ही माने जाते हैं। मक्के शरीफ की यात्रा करने वाले यात्री लोग वहां के जिस संगेअस्वद को जाकर बोसा देते हैं वह भी तो एक प्रकार का बुत ही है ! आपके शिया पक्ष के मुसलमानों के ताजिये क्या हैं, लकड़ी और कागज के साथ अमुक शक्ल के बनाये गये बुत ही तो हैं जिन्हें बड़ी सजधज से निकाला जाता है और अगर कोई भूल से भी उन पर कंकड़ फैकदे तो उसकी जान लेने को तैयार हो जाते हैं फिर उनके आगे जो लोग छाती पीटते हैं वे क्या समझकर पीटते हैं ? लकड़ी और कागज के बने हुए ये ताजिये तो उनका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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