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________________ अध्याय १०३ "मुन्शी अब्दुल रहमान से प्रश्नोत्तर" मालेरकोटला के चातुर्मास में एक दिन मुन्शी अब्दुल रहमान नाम का एक मुसलमान अपने दो तीन साथियों को लेकर प्राचार्यश्री के पास आया और सलाम करके बैठ गया। तब आचार्यश्री ने उनकी ओर दृष्टि डालते हुए बड़े मीठे शब्दों में फर्माया -मिया साहब ! मालूम देता है कि आप कुछ पूछने के लिये यहां पधारे हैं ! __ अब्दुल रहमान - महाराज ! आपके पास तो कोई अजीब किस्म का जादू मालूम देता है, आपने तो आते ही हम लोगों के मनको भांप लिया । हम तीनों ही रास्ते में यह सलाह करते आरहे थे कि सबसे पहले हम यह सवाल पूछेगे, उसका जवाब यदि उन्होंने यह दिया तो फिर हम उन पर यह सवाल करेंगे वगैरह २ । मगर यहां आकर जब हमने आपका दीदार किया-अापके दर्शन किये तो अपनी वे सारी बातें भूल गये इससे तो मैं इसी नतीजे पर पहुँचा हूँ कि आपके पास ऐसा कोई जादू जरूर है जिससे आपके पास आने वाला व्यक्ति अपने आप ही मोहित अथच प्रभावित हो जाता है । तब महाराजश्री बोले-भाई ! हमने तो वीतराग देव के सच्चे धर्म को अपनाया है, उससे बढ़कर और क्या जादू हो सकता है, इसे आप जो चाहें कहलें ! मुन्शीजी-कुछ मुस्कराते हुए-महाराज ! आप वीतराग किसको कहते हैं ? आचार्यश्री-खुदा को। मियां साहब-खुदा तो परमेश्वर का नाम है और हमने सुन रक्खा है कि आप परमेश्वर को मानते ही नहीं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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