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ला० गोन्दामलजी क्षत्रिय का धर्मानुराग
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ला० गोन्दामल --भाई ! मेरा अव उनके पास जाने का कोई काम नहीं रहा. मैंने ढूँढक साधुओं के मुख से जैन धर्म और उसके धर्म गुरुओं की भरपेट निन्दा को बहुत वर्षों तक सुना, अब तो मैं सत्य सनातन जैन धर्म में रंग गया हूँ जिसका सारा श्रेय आचार्यश्री विजयानन्दसूरि श्री आत्मारामजी महाराज को है जिन्होंने मुझे कुमार्ग से हटाकर सन्मार्ग पर लगाया, अब तो ये कान प्रभु वीतराग देव के गुणानुवाद को ही सुनने के आदि हो गये हैं उनसे अब धर्म और धर्मगुरुओं की निन्दा नहीं सुनी जाती।
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