SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 365
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३३४ नवयुग निर्माता पाना ३०४ श्री विगतवार खाते घी मण सवासोलां और दो सेर तंबोली शेरी की धर्मशाला में भादवा सुदि ४ सम्बच्छरी प्रतिक्रमण में बोला गया यह श्री पर्यषणा खाते में जमा किया । । तब से स्वप्नों की बोली का रुपया साधारण खाते में जमा होने लगा। उस समय चार थुई और तीन थुई का कुछ विवाद था, वहां के श्री संघ में तो चार ( थुई । स्तुति की ही प्रवृति थी कोई कोई तीन थुई ( स्तुति ) भी करते थे । जोकि कड़वा मोठा कहलाते थे । आचार्य श्री के चतुर्थ स्तुति निर्णय के निर्माण से तीन स्तुति करने वालों में खलबली का होना स्वभाविक था। इसलिए किसी सिरफिरे ने आचार्य श्री के परोक्ष में इसी विषय को लेकर आचार्य श्री का कुछ अवरण बाद करना प्रारम्भ किया जो कि राधनपुर के श्री संघ को बहुत अखरा, फलस्वरूप संघपति श्री सेठ श्रीचन्द ने उसे संघ बाहर करने का निश्चय किया, जब यह खबर आचार्य श्री के कर्णगोचर गई तो उन्होंने नगर सेठ श्रीचन्दभाई को बुला कर कहा कि अमुक व्यक्ति के लिए आपने संघ बाहर करने का जो निश्चय किया है वह अनुचित है उसे छोडदेना चाहिये । निन्दा करने वाले को निन्दा का फल मिलेगा और स्तुति करने वाला स्तुति के फल का भागी होगा। साधु के लिए तो दोनों हो बराबर हैं इस लिए हमारे निमित्त से किसी के मन को आघात पहुंचे ऐसा काम हमें हरगिज पसन्द नहीं । आप लोग इस संघ सत्ता का यहां उपयोग न करें । हम उस व्यक्ति को संच बाहर करना न्यायोचित नहीं समझते, यदि आप लोग उसे संघ बाहर करेंगे तो हमारी आत्मा को बहुत कष्ट पहुंचे गा। क्या आप संसार में यह प्रसिद्ध करना चाहते हैं कि आत्माराम के चतुर्मास में उसके विरुद्ध बोलने वाले को संघ बाहर किया गया। यह तो उस निन्दा करने वाले से भी अधिक अवांछनीय कार्य है। इसलिए मेहरबानी करके इस अनुचित कार्य का विचार अपने मन से निकालदो । + उक्त ठराव की चौपड़े में से लीगई अक्षरश: नकल इस प्रकार है राधनपुर श्री सागर गच्छसम्वत् १६४१ थी सम्वत् १६४४ नं धनी चोपड़ो पानु ३०३ श्री वतराग देव नमा, संवत् १६४३ ना भादव सुद १ तथा २ न वटशनर श्री विगत खाता बावता शरवण वद०" ना दवस श्री माहवर समजिन जन्म ना दिवस वीजे वखाण मध जन्म वचण पल रुपना चउद सपनानं सागर सगन अपसर मन महाराज आत्माराम अवत वर पसवस उत्तर तबर श्री संघ मलता सपन घउन चढव करत घरो श्री सधरण खत करवछ न घनो मण १ न. ०२) लण ढख करत त्त श्री साधारण खाते जमा । पाना ५/ पानु ३०४ श्री विगत खाते घी मण सवासोल ने बै सेर तंबोली सेरी नी धर्मशाला भादवा सुद ४ ना संवच्छरी पडिकमण मधे बोलाणं ते पजूषण ना खाते जमा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy