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अध्याय ६२
"राधनपुर श्रीसंघ के संगठन की एक झलक"
उस समय का राधनपुर का श्रीसंघ कितना क्रियापात्र धर्मचुस्त और संगठित था उसका एक उदाहरण यहां पर उपस्थित किया जाता है।
राधनपुर के समीप श्री संखेश्वरजी तीर्थ पर हर साल चैत्र के महीने मेला भरता है । आस पास और दूर नेड़े के यात्री लोग काफी संख्या में वहां उपस्थित होते हैं । एक वक्त वहां के नवाब की तरफ से मेले में जानेवाले यात्रियों पर टैक्स लगाने की घोषणा की गई । उस समय राधनपुर में सेठ श्रीचन्द भाई मोहनलाल टोकरसी, तथा मोटा परिवार के लोग और खासकर गौड़ीदास भाई आदि श्रावक धर्म चुस्त और प्रभावशाली व्यक्ति थे। इनमें श्रीचन्द भाई नगर सेठ थे,ये सब महानुभाव धर्म के हर एक काम में अच्छा सहयोग देते और जो काम करते सब मिलकर सम्मति से करते,इसलिये जनता पर इनका खासा प्रभाव पड़ता था । जब तीर्थ क्षेत्र पर जानेवाले यात्रियों पर कर लगाये जाने की बात नगर सेठ श्रीचन्द भाई के कान में पहुंची तो उसने एक घोषणा पत्र द्वारा राधनपुर तथा आस पास के ग्रामों में सूचना करादी कि श्री संखेश्वर तीर्थ की यात्रा के लिये जाने वाले लोगों पर नवाब साहब की तर्फ से कर लगाये जाने की घोषणा की गई है जो कि सर्वथा अनुचित है इसलिये इस वर्ष वहां किसी को यात्रा के लिये जाना नहीं चाहिये । इस सूचना से उस वर्ष वहां कुछ इने गिने आदमियों के सिवा कोई नहीं गया । तब नवाब साहब ने सेठ श्रीचन्द को बुलाकर कुछ उत्तेजना भरे शब्दों में बोलते हुए कहा
सेठ साहब ! क्या आपके पास कोई ऐसी सत्ता है, जिसके आधार पर आपने राधनपुर तथा आसपास के ग्रामों में यह घोषणा करादी है कि इस वर्ष कोई यात्री यात्रा के लिये श्री संखेश्वरजी में न जावे ?
सेठ श्रीचन्द-श्रीमानजी ! मुझे श्रीसंघ की तरफ से संघपति तरीके की जो सत्ता प्राप्त है उसके आधार पर मैं ने अपने भाइयों को सूचित करना अपना कर्तव्य समझा, राज्य की तर्फ से होनेवाले किसी
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