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अध्याय ६१
"चतुर्थ स्तुति निर्णय की रचना"
राधनपुर पधारने के बाद आषाढ़ शुक्ला दशमी गुरुवार के दिन एक लड़के को श्री शांतिविजय के नाम की दीक्षा दी और भक्तिविजय नाम रक्खा ।
इस चातुर्मास में प्राचार्य श्री के बदले प्रतिदिन का व्याख्यान श्री हर्षविजयजी महाराज ही करते रहे । व्याख्यान में "श्री सूत्र कृतांग" और "धर्मरत्न प्रकरण" बांचते रहे । महाराज श्री की आंखों में यद्यपि मोतिया उतर रहा था तो भी श्रावक समुदाय के विशेष आग्रह से आपने "चतुर्थ स्तुति निर्णय" नाम के निबन्ध की रचना की।
यह पुस्तक छपकर प्रसिद्ध हो चुका है । इसमें श्री राजेन्द्र सूरि और धनविजयजी के स्तुति सम्बन्धी विचारों की समालोचना की गई है।
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