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________________ नवयुग निर्माता हुआ मैं इसका पत्र पहुंचते ही यहां भागा चला श्राया हूँ मैंने जन्म भर कभी ऊंट की सवारी नहीं की परन्तु इसके लिये मुझे ४० कोस का लम्बा सफर ऊंट पर तय करना पड़ा जिसकी विकटता का अनुभव मेरे को ही है । सो महाराज मेरी तो यही अभिलाषा थी कि छगन जीवन भर मेरी आंखों से श्रोझल न हो और बुढापे में मेरे काम आवे । परन्तु यहां आने पर सेठ मोइनलाल के घर में इसके साथ वार्तालाप करने पर और यहां पर दिये गये भाषण को सुनने के बाद मेरे भावों में बिल्कुल परिवर्तन आगया। मेरे आत्मा पर मोह जन्य अज्ञान का जो पर्दा पड़ा हुआ था वह हट गया, अब तो मेरा मन किसी दूसरी ही विचारधारा में प्रवाहित हो रहा है। बड़े २ राजा महाराजा, यहां तक कि चक्रवर्ती आदि ने अपनी बड़ी से बड़ी सांसारिक ऋद्धि का भी परित्याग करके जिस मुनि धर्म को अपनाया उस मुनि धर्म को मेरा पुत्र समान भाई अपनाने को तैयार हो इससे बढ कर मेरा सद्भाग्य क्या हो सकता है । अतः आज मैं आप श्री के समक्ष सच्चे हृदय से बडी प्रसन्नता पूर्वक इसको मुनि धर्म में दीक्षित होने की अनुमति देता हूँ और शासन देव से प्रार्थना करता हूँ कि जिस पुनीत भावना से यह मुनि धर्म का अनुसरण कर रहा है उसमें उत्तरोत्तर प्रगति हो। अब आप कृपा करके इसकी दीक्षा का मुहूर्त निकालने का यत्न करें। मेरी तर्फ से हर प्रकार की आज्ञा है और मैं भी यथाशक्ति इसके दीसा समारम्भ में सहयोग देने का यत्न करूंगा। भाई खीमचन्द के इन उदगारों को सुन कर आचार्य श्री बड़े प्रसन्न हुए और मुक्त कंठ से सराहना की । तदनन्तर अगले दिन वहां के एक प्रसिद्ध ज्योतिषी को बुलाया और साथ में पं० अमीचन्द जी जो कि उस समय साधुओं को पढाते थे, बैठे। मुहूर्त का निश्चय किया गया जो कि बैशाख सुदी त्रयोदशी बुधवार का था। स्वीमचन्द भाई ने महाराज श्री से अर्ज की कि गुरुदेव ! यदि कोई समीप का अर्थात् दो चार दिन के अन्तर का मुहूर्त निकल आता तो मैं ठहर सकता था अब इतने दिन तो ठहरना मेरे लिये बहुत मुश्किल है कारण कि इस दशमी को मेरा दुकान के लायसन्स की तारीख है इसलिए छगन की दीक्षा के समय यदि मैं शरीर से हाजिर नहीं होसका तो मन से अवश्य उपस्थित रहूँगा। इतना कह कर सेट मोहनलाल आदि से दीक्षा सम्बन्धी व्यय के बारे में बातचीत करके राधनपुर से विदा हुए। प्रसन्न चित्त से भाई की आज्ञा मिल जाने से छगनलाल का मन बल्लियों उछलने लगा, श्राज उसकी प्रसन्नता का कोई ठिकाना नहीं था। वह मन ही मन अपने सद्भाग्य की भूरि २ सराहना करता और उसे गुरुदेव की अनन्य कृपा समझ कर उनके चरणों में बार २ प्रणाम करता। छगनलाल की दीक्षा के मुहूर्त का समाचार मिलने पर राधनपुर के श्री संघ में भी खुशी की लहर दौड़ गई। घर २ में मंगल गीत गाये जाने लगे इस निमित्त श्री मन्दिरजी में पूजा प्रभावना आदि का प्रारम्भ होगया और छगनलाल को घर घर में निमन्त्रित किया जाने लगा यह प्रत्येक घर से सत्कृत होकर वापिस लौटता। मुहूर्त के दिन दीक्षार्थी छगनलाल का वरघोड़ा बडी धूमधाम से निकाला गया जो कि शनैः २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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