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छगन की दीक्षा का पूर्व इतिवृत्त
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कि चौमासे बाद गोकुल भाई इसको साथ पीछे ले आवे तब हीरा भाई ने मुस्कराते हुए कि हां,यह आवेगा तो गोकुल भाई इसे जरूर ले आवेगा,तब खीमचन्द भाई ने छगनलाल से कहा कि यदि तू बडौदे वापिस भाना स्वीकार करे तो आज्ञा देता हूँ ? छगनलाल ने परिस्थिति को देखते हुए खीमचन्द भाई की यह शर्त मान ली और गोकुल भाई के साथ पालीताणे चला आया और उसने पालीताणा में गुरु महाराज का प्रवेश महोत्सव देख लिया। कार्तिकी पूर्णिमा पर यमुना बहन यात्रा के लिये पालीताणा आई तो उसने बिना पूछताछ किये उत्सव चलता देख कर खीमचन्द भाई को सूचना दे दी कि यहां पंचमी को छगन की दीक्षा होगी, तब खीमचन्द भाई ने पालीताणा दरबार को तार दिया कि दीक्षा रोको, परन्तु वहां तो दीक्षा का स्वप्न भी किसी को नहीं था। वह तो धुलिया निवासी श्री सखारामजी के बारह व्रत उच्चारण के हेतु धूमधाम थी जिसे देख कर यमुना बहन ने बडौदे लिख दिया। वहां चौमासा पूर। कर छगनलाल गुरु महाराज के साथ राधनपुर चले गये ।
___ राधनपुर के श्री संघ में गुरु महाराज के पधारने पर बड़ा उत्साह दिखाई देता था वे किसी बडे महोत्सव के लिये विचार कर रहे थे। तब गुरु देव के साथ में आये हुए दीक्षार्थी छगनलाल को देख कर दीक्षा के निमित्त उत्सव मनाने का विचार निश्चित होने लगा । महाराज श्री के समक्ष दीक्षा का प्रस्ताव रखा गया परन्तु बडे भाई की आज्ञा के बिना महाराज जी कैसे दीक्षा दे सकते थे तब सेठ मोतीलाल मूल जी, चुनीलाल वीरचन्द और श्री भग्गू भाई आदि संघ के आगेवानों के परामर्श से छगनलाल के बडे भाई को पत्र लिखा-"आप जल्दी पधारो एकम व दूज को मेरी दीक्षा होगी। पत्र मिलते ही बूश्रा को साथ लेकर खीमचन्द भाई राधनपुर पहुंचे। जब खीमचन्द भाई बडौदे से चलने लगे तो हीरा भाई ने कहा कि देखो वहां जाकर किसी प्रकार का तोफान नहीं करना" - उसे (छगनलाल को) प्रेम पूर्वक समझाना किसी प्रकार का बलात्कार न करना,यदि वह आने को राजी होवे तो साथ ले आना.नहीं तो उसे खुशी खुशी दीक्षा की रजा दे पाना । उसका मन अब संसार से विरक्त हो चुका है, तुमने दो तीन बार उसे लाकर देख लिया, तुम उसे गृहस्थ के बन्धन में डालना चाहते हो और वह बन्धन से मुक्त होना चाहता है, फिर तुम्हारे और उसके विचारों में मेल कैसे खावे ? इसलिए जो कुछ भी करना सोच समझ कर करना। सेठ हो। भाई की इस हित शिक्षा का यह फल हुश्रा कि खीमचन्द भाई ने राधनपुर में आकर किसी प्रकार का विवादजनक व्यवहार नहीं किया। वे जिसके यहां आकर ठहरे थे उन के समीप में ही सेठ मोहनलाल टोकरसी (जो कि बडे प्रतिष्ठित खानदान के थे) को पता लगा कि छगनलाल के बडे भाई आये हैं, तब उन्होंने खीमचन्द भाई को अपने घर बुलाया और उनका उचित आदर सत्कार करने के अनन्तर उससे शान्तिपूर्वक वार्तालाप किया और धीरज दी। आप किसी प्रकार की चिन्ता न करें, छगनलाल को श्रापकी आज्ञा के बिना कभी दीक्षा नहीं दिलाई जावेगी। कहो तो उन्हें अभी यहां बुला लिया जावे ? नहीं तो थोड़ी देर बाद वे यहीं पर जीमने के लिए आवेंगे, उस वक्त बातचीत कर लेनी, और आप भी आज यहां पर ही जीमने की कृपा
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