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________________ ३२२ नवयुग निर्माता पारावार न था, और साधु भी खीमचन्द भाई की चतुराई को न भांप कर प्रसन्न हो रहे थे । १५ दिन बाद साधु ने पालीताणा की ओर विहार किया और छगनलाल भी अपना जरूरी सामान उठाकर साथ हो लिये । " न जाएयुं जानकीनाथे सवारे शु' थवानु" सभी साधु महाराज और उनके संग २ चलता हुआ आत्मतोष-विभोर खुशी में मस्त - छगनलाल बावला गाँव में पहुँचे ही थे कि इतने में खीमचन्द भाई अपने बड़े बहनोई नानालाल और पटेल भाई भगवानदास को साथ ले गाड़ी से उतरे और दबादब उपाश्रय में आ पहुँचे। उन्हें देखते ही छगनलाल की सब खुशी काफूर हो गई, ऊपर का सांस ऊपर और नीचे का नीचे रहगया । आते ही आव देखा न ताव, छगनलाल का हाथ पकड़कर उसे घसीटते हुए लेजाने लगे । उसके इस व्यवहार से सब साधु हैरान से होगये । तब साधुओं ने कहा अरे खीमचन्द भाई ! अहमदाबाद में क्या कह रहे थे और अब क्या कर रहे हो ? जवाब में खीमचन्द ने कहा महाराज ! वोह खीमचन्द और था मैं और हूँ । उस समय तो मैं ने बनिया बुद्धि चलाई थी, अहमदाबाद शहर था कहीं कोई छिपालेता तो फिर मैं क्या करता ? मगर यहां वोह बात नहीं है । उन्ही भगवानदास का वहां सुसराल होने से उसके पक्ष के लोग इकट्ठे हो गये इसलिये वहां के श्रावकों में से कोई कुछ कर न सका और खीमचन्द भाई भगवानदास की मदद से छगनलाल को जबरदस्ती गाड़ी में बैठाकर बड़ोदे ले आये। बड़ोदे आने के बाद कितने एक दिन तो कड़े पहरे में रहना पड़ा। फिर कुछ दिनों बाद बन्धन ढीले करदिये गये । परन्तु इस व्यवहार से छगनलाल के मन को बहुत श्राघात पहुंचा। उसको वहां से घसीट कर लाना तो वैसा ही था जैसे जल में से मछली को घसीट कर बाहर लाया जाता है। उसके मनकी तड़प को वही जानता था । कुछ दिनों बाद खीमचन्द भाई के मासी के बेटे हीराभाई जौहरी -जो कि बड़े समझदार व्यक्ति थेखीचन्द भाई से कहा कि तुम उसे नाहक में क्यों तंग कर रहे हो ? यह अपनी धुन का पक्का है यह कने वाला नहीं । हीराभाई का खीमचन्द पर बहुत प्रभाव था यह उससे उतना ही डरता था जितना कि इससे छगनलाल । तत्र खीमचन्द भाई कुछ ढीले से होकर वहां से चले गये । इतने में श्री गोकुलभाई-जो कि बड़ो के मुखिया और धर्मात्मा श्रावक थे - पालीताणा में चौमासा रहने के लिये श्री हीराभाई से अनुमति छगनलाल भी पास में बैठा हुआ था, उसने श्री हीराभाई से प्रार्थना की कि आप मुझे भीगोकुलभाई के साथ पालीताणा भिजवा देवें । हीराभाई समझ गये कि अब इसने घर में नहीं रहना । बोले कि खीमचन्द भाई आवेगा उसको कह कर तेरा प्रबन्ध करा दिया जावेगा ? गोकुल भाई चले गये खीमचन्द भाई आगये । छोरा भाई ने खोमचन्द भाई से कहा कि छगन, गोकुल भाई के साथ पालीताणे जाता है इसका टिकिट वगैरह का सारा प्रबन्ध कर देना ? खीमचन्द भाई को अनिच्छया भी हीरा भाई की बात माननी पड़ी और प्रबन्ध कर देने का वचन दे दिया परन्तु साथ में इतना प्रतिबन्ध लगा दिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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