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नवयुग निर्माता
अतिरिक्त नया घर, नया परिवार और नया वातावरण । बालक आत्माराम के मन को सद्यः आकर्षित न कर सका, परन्तु धीरे धीरे लाला जोधामल के निर्मल स्नेह और लाड़ प्यार ने उनके मन को जीत लिया और वे अपने नये मित्रों तथा संगी साथियों के साथ हिलमिल कर रहने लगे ।
बच्चों का मन खेल कूद में अधिक लगता है । आत्मारामजी भी अपने समवयस्क मित्रों के साथ खूब खेलते कूदते, कभी हरे भरे खेतों और बागों की सैर करते तो कभी नदी के किनारे घूमते फिरते और नदी में तैरते परन्तु उनके खेलने कूदने में भी सबसे अलग एक विलक्षणता थी । उनकी आत्मा में छिपी हुई अदम्य शक्ति अपने को प्रकट करने का अवसर ढूंढती रहती । वे स्वयं यह न जान पाते कि उनके भीतर क्या कुछ होरहा है | लड़के खेल में मगन होते तो आत्मारामजी अपनी अंगुलियों से धरती पर कई तरह के चित्र बनाते रहते, हाथ से खींची गई रेखायें अपने आप मुंह बोलते चित्र बन जाती ! उनकी इस तरह की बालक्रीड़ा को देखकर कोई भी कह सकता था कि बालक आत्माराम भारत में अपने समय का एक महान् चित्रकार होगा, परन्तु नहीं, आत्माराम को तो इससे भी अधिक महान् होना था, इसलिये उनकी कला व्यअना बहुत आगे न बढी, क्योंकि संसार के इन बाह्य दृश्यों को चित्रित करने के स्थान पर उन्हें अपने हृदय में बसाकर स्थूल जगत के सूक्ष्म तत्त्वों का विश्लेषण जो करना था, यही तो था उनके जीवन का उद्देश्य जो आगे चलकर पूर्ण हुआ । परन्तु उस समय उनमें बस रहा चित्रकार ही अधिक चञ्चल और मुख्य स्थान लिये हुए था। थोड़े ही समय में ऐसी सुन्दर तस्वीरें बना देते कि देखने वाला दङ्ग रह जाता ।
एक समय की बात है कि आत्मारामजी अपने मित्रों के साथ खेल रहे थे, खेलते खेलते आपने प्रथम अपने घर का नक्शा बनाया, उसमें लाला जोधेशाह तथा उनके कुटुम्ब के चित्र बनाये इतने में कहीं से लाला जोधेशाह भी आ पहुंचे, चित्र को देखकर बड़े चकित हुये और लड़कों से पूछा कि यह चित्र किसने बनाया है ? उत्तर में सबने आत्मारामजी का नाम लिया यह सुन जोधामलजी को बड़ी प्रसन्नता हुई और आत्मारामजी को बड़ी स्नेह भरी दृष्टि से देखते हुये वहां से चल दिये ।
उन दिनों ताश का खेल ग्राम नया ही आरम्भ हुआ था, आत्मारामजी ने एक ताश को देखकर वैसा ही दूसरा नया तारा तैयार कर लिया और अपने साथियों से खेलने लगे ।
आत्मारामजी अपने साथियों के साथ ताश खेल रहे थे कि इतने में उधर से अंग्रेजी सेना के कुछ अफसर गुजरे, उनका ताश खोया गया था, उन्होंने लड़कों से ताश मांगा, पर लड़के कब अपनी खेल की चीज देते, किसी मूल्य से भी नहीं, परन्तु आत्मारामजी को उनका नायक समझ कर - " क्योंकि वे लगते ही ऐसे थे, लाखों में एक" उनसे दुबारा प्रार्थना की तो आत्मारामजी ने लड़कों से ताश लेकर उन्हें देदी, इसके बदले वे जो कुछ देने लगे उसे धन्यवाद पूर्वक लेने से इनकार कर दिया। आपके इस सद् व्यवहार से अंग्रेज अफसर बड़े प्रसन्न हुए मगर साथी नाराज । उनका दिल टूटने लगा क्योंकि उनकी खेल की वस्तु जो उनसे
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