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________________ फिर चूड़ा गांव में तो मुझे आठ दिन रहने में कोई हरकत नहीं आप लोग अपना उत्साह पूरा कर लो। यह सुनते ही सबने हर्षनाद करते हुए आदीश्वर भगवान और गुरु महाराज के नाम का जयकारा बुलाया तथा पूरे उत्साह के साथ अठाई महोत्सव आदि की तैयारी में लग गये । तदनन्तर अठाई महोत्सव का आरम्भ कर दिया गया और उसकी समाप्ति पर बड़ी सजधज के साथ रथयात्रा भगवान की सवारी निकालने का दिन निश्चित करलिया गया । तदनुसार ठाकुर साहब से रथयात्रा के लिये परवानगी मांगी और साथ ही आपको रथयात्रा के महोत्सव में पधारने के वास्ते प्रार्थना भी की गई। रथयात्रा का वरघोड़ा निकालने की आज्ञा देते हुए ठाकुर साहब ने फर्माया कि बहुत दिनों के बाद आप लोगों को इस प्रकार से उत्सव मनाने का अवसर प्राप्त हुआ है इसकी मुझे बड़ी खुशी है मैं आप लोगों के उत्सव में बड़ी प्रसन्नता से सम्मिलित होने की कोशिश करूंगा और यदि किसी आवश्यक कार्यवश में न आसका तो कुंवर साहब और दीवान साहब तो अपने लवाजमें महित अवश्य वरघोड़े में पधारेंगे । निश्चित किये गये दिन में भगवान की सवारी का वरघोड़ा बड़ी धूम धाम से निकला और दीवान साहब के साथ कुंवर साहब भी पधारे । भगवान की सवारी का जुलूस बड़ी धूम धाम के साथ मन्दिर से चला और जब थानक के पास पहुँचा तो हमारे इन भाइयों ने-[जो कि पहले से थानक उपाश्रय में एकत्रित होकर बैठे हुए थे अन्दर से जुलूस पर कंकड़-पत्थर-फेंकने शुरु कर दिये । दैवयोग एक कंकड़ जुलूस में पधारे हुए कंवर साहब को जाकर लगा, बस फिर क्या था इशारा पाते ही पुलिस के सिपाही उपाश्रय में जा घुसे और कंकड़ फेंकने एवं गड़बड़ करने वालों की पहले तो अच्छी तरह से आरती उतारी और मेथीपाक खिलाया फिर उनमें से जो मुखिया थे उन पर फौजदारी केस बनाकर उनका चालान करदिया गया। रथयात्रा की सवारी आनन्दपूर्वक अपने नियत स्थान पर वापिस पहुँच गई । और साधर्मी वात्सल्य के साथ महोत्सव का काम समाप्त हुआ। दूसरे दिन ठाकुर साहब मन्दिर में प्रभु दर्शन के लिये पधारे और वहां से गुरु महाराज के दर्शन को आये । गुरु महराज का दर्शन करते ही ठाकुर साहब बड़े प्रभावित हुए और नमस्कार करके बोले-महाराज ! आप मेरे इस नगर में जब पहले पधारे थे तो उस वक्त मैं आपका दर्शन नहीं करसका । श्राज मेरे अहोभाग्य हैं जो मैं आपके दर्शन कर पाया हूँ। आप जैसे परमत्यागी और तपस्वी महात्माओं के दर्शन भी पूर्व जन्म के किसी सुकृत का ही फलरूप हैं । आपश्री के यहां पधारने से आज यह सारा नगर उत्सव रूप बन रहा है यह आपके तपोमय जीवन को ही आभारी है । मुझे आपश्री के दर्शन करके बहुत आनन्द मिला। ठाकुर साहब के इस कथन के अनन्तर स्मित मुख से धर्मलाभ देते हुए गुरुदेव ने फर्माया कि आप सरीखे सज्जन राजपुरुषों की मीठी नज़र से सबका भला होता है । यदि आप जैसे संरक्षकों की मेहरबानी न हो तो किसी का भी अभीष्ट सिद्ध नहीं हो सकता । मैं ने सुना है कि कुंवर माहब के कुछ चोट Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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