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________________ ३१६ नवयुग निर्माता लगी है, कुछ बेसमझ लोगों की अदूरदर्शिता से उनकी इस हरकत को कोई भी बुद्धिमान अच्छा नहीं कह सकता। परन्तु मेरी समझ के अनुसार उनको इतनी ही सजा काफी है, अब उन लोगों को अधिक सजा देनी उचित नहीं। यदि वे आगे के लिये क्षमा मांगलें तो उन्हें मुक्त कर देना चाहिये । आप तो अपनी सज्जनता का ही ध्यान रखें । ठाकुर साहब-महाराज ! आपका फर्माना तो उचित ही है परन्तु इन लोगों ने जो हरकत की है उससे मुझे बहुत कष्ट पहुँचा है, कुंवर साहब के मामूली सी चोट आई है उसका तो मुझे ध्यान तक भी नहीं परन्तु इन लोगों ने सवारी में कंकर फेंकने में भगवान की अवज्ञा की है जो कि मुझे असह्य हो उठी उसी के फलस्वरूप इनकी यह गिरफ्तारी हुई है । तिस पर भी आप जैसे फर्माते हैं, आपकी आज्ञा का पालन किया जावेगा। इतना कहने के बाद ठाकुर साहब नमस्कार कर वहां से विदा हुए और अपने महल में पहुँचते ही दीवान साहब को बुलाकर जेल दारोगा के नाम हुकम भिजवा कर उन्हें वहां से मुक्त कर दिया । परन्तु ये लोग फिर भी शरारत करने से बाज नहीं आये । मन्दिराम्नाय वालों की तर्फ से जब भी कोई महोत्सव मनाया जाता तो ये लोग किसी न किसी प्रकार से उसमें विघ्न डालने की कोशिश करते ही रहते । कभी स्वयं न करके चार गुंडों को बुलाकर उनके द्वारा गड़बड़ कराते, तब इधर से भी ईंट का जवाब पत्थर से देने का यत्न किया जाता और ये लोग भी कुछ गंडों को पैसे देकर उनके जल्से जलूस में गड़बड़ करने का यत्न करते । कई वर्षों तक ऐसा चलता रहा । अन्त में जब दोनों को अकल आई तो दोनों ने आपस में मेल जोल कर लिया और अपनी भूल सुधार ली। इस बात का अनुभव उस वक्त हुआ जब-[वि० सं० २००१ में ] पालनपुर का चातुर्मास समाप्त करके पालीताणा की तर्फ जाते हुए चूड़ा गांव में हमारा जाना हुआ। वहां के श्रावकों ने साधुओं का प्रवेश बड़े समारोह के साथ किया और उसमें वहां के ढंढक श्रावकों ने पूरा पूरा सहयोग दिया। मंगलाचरण रूप थोड़ासा उपदेश देने के अनन्तर उनसे पूछा कि कहो भाई ! अब तो तुम्हारा आपस में कोई विरोध नहीं रहा ? दोनों पक्ष का श्रावकवर्ग हाथ जोड़कर नहीं महाराज ! अब कोई विरोध नहीं है । अब तो हम हर एक कार्य में एक दूसरे का हाथ बटाते हैं । आपस के विरोध से हमने बहुत हानि उठाई । अब हम समझ गये हैं । आशा है आप जैसे सत्पुरुषों की कृपा से हमारा यह मेल सदा बना रहेगा। हमने कहा कि भाई ! आप लोगों ने परस्पर सहयोग देने का जो मार्ग अखत्यार किया इसी में आप सबकी भलाई है। यदि आप लोगों का परस्पर प्रेम रहेगा तो कोई दूसरा आपके किसी भी सांसारिक और धार्मिक कार्य में किसी प्रकार का विघ्न उपस्थित नहीं कर सकेगा इसलिये आपस में सदा प्रेम बनाये रखने का यत्न करना । अपने देश की यह कहावत तो प्रसिद्ध ही है-"जहां सम्प तहां जम्प" अर्थात् जहां पर प्रेम और संघठन होता है वहां पर ही विजय होती है । इतना सुनकर सब भाई आनन्द से वीरप्रभु के नाम का जयकारा बुलाकर और प्रभावना लेकर अपने २ स्थान को चले गये । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003203
Book TitleNavyuga Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijayvallabhsuri
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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