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अध्याय ८७
"फिर चूहा गांव में"
चातुर्मास के बाद दर्शनों के निमित्त थोड़े दिन ठहर, अपने शिष्य परिवार के साथ आपने पालीताणा से आनन्दपूर्वक विहार किया और ग्रामानुग्राम विचरते हुए शिहोर और वला आदि में होते हुए श्राप चूड़ा ग्राम में पधारे। चूड़ा श्रीसंघ आपश्री के आगमन की खबर पाते ही गद्गद् हो उठा। उसने बड़े समारोह के साथ आपश्री का नगर प्रवेश कराया। आपश्री ने मंगलाचरण सुनाने के बाद थोडासा धर्मोपदेश सुनाया जिससे श्रोता लोगों के हृदय में आनन्द का समुद्र ठाठे मारने लगा। व्याख्यान समान होते ही श्री संघ के आगेवानों ने हाथ जोड़कर कहा-गुरुदेव ! आपश्री के प्रताप से हमारा बेड़ा पार होगया । रथयात्रा आदि निकालने के सम्बन्ध में हमारा जो केस चलरहा था उसका फैसला बम्बई हाईकोर्ट ने हमारे हक में दे दिया । फिर बोले-महाराज ! आपश्री को याद ही होगा आपने दिल्ली की कोर्ट का फैसला भंगवा कर अपील के साथ दर्ज करने को कहते हुए यह भी फर्माया था कि अधिक चिन्ता करने की कोई बात नहीं, शासनदेव की कृपा से सब अच्छा हो जावेगा, मो आपश्री के मुग्वार विन्द से निकला हुअा अमोघ आशीर्वाद सफल हुश्रा और श्रान हम इस योग्य होगये हैं कि किसी भी धार्मिक पर्व को अपनी इच्छा के अनुसार मना सकते हैं, उस में किसी प्रकार का भी प्रतिबन्ध नहीं रहा । यह सब कुछ आप जैसे महापुरुष के प्रभाव को ही अाभारी है । तदनन्तर वहां के मुबी श्रावकों ने श्रीसंघ की ओर से विनति करते हुए कहा-गुरुदेव ! श्री संघ की यह तीव्र इच्छा है कि हमारे परम सौभाग्य से आपश्री दोबारा यहां पधारे हैं
और हम लोगों ने यहां पर अठाई महोत्सव और रथयात्रा निकालने का आयोजन किया है तब तक आपनी यहां पर ही विराजने की कृपा करें। इसके उत्तर में गुरु महाराज ने फर्माया कि यदि श्रीसंघ की यही इच्छा है
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